कोरिया बैकुंठपुर। जिले में एसईसीएल के द्वारा संचालित कालरी क्षेत्र में निवास कर रहे ग्रामीण मजदूर की समस्याओं मैं कमी होने का नाम नहीं ले रहा है जहां क्षेत्र में निवास कर रहे लोग अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं वहीं पर कालरी क्षेत्र के आसपास के ग्रामीण क्षेत्र में निवास कर रहे लोगों के आस्था एवं संस्कृति के साथ खिलवाड़ करने में कोई कमी नजर नहीं आ रही है ऐसे ही मामले में पांडव पारा झिलमिली कालरी के समीप एक ढोडी इसके पानी का उपयोग ग्रामीणों के द्वारा पूजा पाठ में किया जाता है इस क्षेत्र में कालरी का गंदा पानी ढोड़ी मे मिलकर पानी को दूषित कर रहा है जिससे ग्रामीणों के आस्था एवं संस्कृति को ठेस पहुंच रहा है इस मामले में प्रतिनिधि ने जानना चाहा कि आखिर यह ढोढ़ी इतना महत्वपूर्ण क्यों है ग्रामीणों ने जानकारी देते हुए बताया कि एसईसीएल पांडवपारा सहक्षेत्र झिलमिली के कॉलोनी का गंदा व दूषित पानी गटर के सहारे ग्रामीण व आदिवासी संस्कृति के प्रतीक रासढोंढी में बीते कई वर्षों से निरंतर जा रहा है जिससे आदिवासी संस्कृती व धार्मिक भावनाएं रोजाना आहत होने के साथ नष्ट होने के कगार पर है लेकिन एसईसीएल प्रबंधन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है अपितु कॉलोनी से गटर का दुर्गंधयुक्त दूषित पानी कच्ची नाली के सहारे निकालकर अपने कर्तव्यों का इतिश्री कर ली है।एसईसीएल द्वारा ग्राम पंचायत खोंड में दो भूमिगत कोयला खदान पांडव पारा व झिलमिली संचालित हैं। एसईसीएल कर्मियों के निवास हेतु प्रबंधन द्वारा कॉलोनी बनाया गया है।इन्ही कॉलोनी में से दूषित, दुर्गंधयुक्त,गंदा पानी क्रंकिट नाली के सहारे कॉलोनी से बाहर निकालकर प्रबंधन अपने कर्तव्य का इतिश्री कर ली जाती है। लेकिन आगे यह गटर का पानी कच्ची नाली के सहारे बहते हुए कॉलोनी से बमुश्किल 200 मीटर दूरी पर खेत में स्थित ग्राम के रास ढोंढी के पास पहुंच जाती है जहां बरसात के दिनों में कॉलोनी का गंदा पानी व बारिश की पानी अत्यधिक भरने के वजह से ग्राम के रास ढोंढी कुंए में मिल जाता है जिससे ग्रामीण संस्कृति से जुड़ी ढोंढी का पानी भी दूषित हो रही है लेकिन इस ओर प्रबंधन का तनिक भी ध्यान नहीं है जिससे ग्रामीणों में काफी रोष उत्पन्न हो रहा है। आपको बताते चलें कि ग्रामीण जनजीवन,आदिवासी संस्कृति व मान्यता अनुसार रास ढोंढी देवता के रूप में पूजनीय हैं।ग्राम के हर शुभ कार्य में रास ढोंढी के जल का विशेष महत्व है।बताया जाता है कि कठोरी पूजा के बाद इस ढोंढी के रास पानी को ग्राम के सभी घरों में पहुंचाया जाता है जिसे पूरे घरों में छिड़काव किया जाता है जिससे लोगों की सुख समृद्धि बनी रहे। वही गंगा दशहरा के शुभ मुहूर्त में ग्राम के बैगा द्वारा इसी रास ढोंढी रूपी देवता से अच्छी बारिश हेतु मिन्नत मांगते हुए पूजा किए हुए धान को बोकर कृषि कार्य का भी शुभारंभ किया जाता है। वहीं शादी ब्याह में नव विवाहित जोड़े को इसी ढोंढी के पानी को पिलाकर देवता का आशीर्वाद लिया जाता है। एसईसीएल द्वारा संचालित दोनो खदाने लगभग 30 वर्षों से ग्राम पंचायत खोंड से कोयला निकालकर मुनाफा कमा रही हैं लेकिन ग्राम पंचायत के गोद में बैठी एसईसीएल कंपनी को ग्राम के विकास व मूलभूत सुविधा बहाल में कोई दिलचस्पी तो नहीं दिखाई वरन वायु,मृदा,ध्वनि प्रदूषण फैलाकर गांव के आबोहवा को दूषित जरूर कर दिया है जिसका नुकसान यहां के ग्रामीणों को रोजाना उठाना पड़ रहा है। यही कारण है कि ग्रामीण व आदिवासी संस्कृति के प्रतीक रास ढोंढी तक को प्रबंधन संरक्षित करना तो छोडि़ए गटर का दूषित जल डालकर उसे भी नष्ट करने में तुला हुआ है।जबकि खदान खोले जाने के पूर्व कंपनी द्वारा विकास के गंगा बहाने जैसे बड़े बड़े दावे किए जाते हैं लेकिन हकीकत तो रास ढोंढी रूपी कुंआ स्वयं बयां कर रही है। ग्राम के बैगा राम तीरथ सिंह बताते हैं कि रास ढोंढी हमारे लिए किसी मंदिर से कम नहीं है इससे हमारी ग्रामीण संस्कृति,रीति- रिवाज,परंपराएं जुड़ी हुई हैं।हम लोग हरेक शुभकार्य जैसे शादी-विवाह,रामनवमी,दशईं पूजा, गंगा दशहरा,कठोरी में इनका पूजन के साथ हवन कर आशीर्वाद लिया जाता है। विवाह में नव दंपति इस ढोंढी के पानी को पीते हैं ताकि उनके जीवन में आशीर्वाद,सुख समृद्धि बनी रहे।वहीं कठोरी पूजा के बाद यहां के पानी को लेकर प्रत्येक घरों में पहुंचाते हैं जहां सभी समाज के लोग उस पानी को अपने घरों में सींचते है जिससे घर के शुद्धि के साथ सुख-समृद्धि बनी रहती है ऐसी मान्यता है। एसईसीएल कंपनी से संरक्षण तो बेमानी है लेकिन खत्म होने से बचाना और मुश्किल काम है। ग्राम के लोग मेरे पास आए थे बरसात होने के कारण मशीन वहां नही जा सकता लेकिन आदमी लगाकर रास ढोंढी में गंदा पानी के मार्ग को परिवर्तित कर दिया जाएगा ताकि किसी भी स्थिति में गंदा पानी कुंए में न जाए जिसकी समुचित व्यवस्था की गई है।