नईदिल्ली, १६ जुलाई [एजेंसी]।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एहतियाती हिरासत पर कानून आवश्यक रूप से कठोर हैं। यह किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कम कर देते हैं और उसे बिना सुनवाई के सलाखों के पीछे रखा जाता है। इसलिए ऐसे मामलों में निर्धारित प्रक्रिया का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने एक ऐसे व्यक्ति की रिहाई का आदेश दिया, जिसकी हिरासत अधिकारियों द्वारा उसके प्रतिवेदन पर विचार किए बिना दो बार बढ़ा दी गई थी। जस्टिस अनिरुद्ध बोस और सुधांशु धूलिया की पीठ ने प्रकाश चंद्र यादव उर्फ मुंगेरी यादव की हिरासत को बरकरार रखने के झारखंड हाई कोर्ट के आदेश को रद कर दिया।
प्रकाश चंद्र यादव को झारखण्ड अपराध नियंत्रण अधिनियम, 2002 के तहत असामाजिक तत्व घोषित कर दिया गया था। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि कानून की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। इसके साथ ही यादव को झारखंड के साहिबगंज जिले की राजमहल जेल से रिहा करने का आदेश दिया गया।पीठ ने कहा कि एहतियाती हिरासत पर सभी कानून आवश्यक रूप से कठोर हैं। ऐसे मामलों में हिरासत में रखे गए व्यक्ति के पास प्रक्रिया का ही सहारा होता है। इसलिए इस कानून में प्रक्रिया का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। मालूम हो कि झारखण्ड अपराध नियंत्रण अधिनियम के तहत राज्य सरकार किसी असामाजिक तत्व को अवांछित गतिविधियों में शामिल होने से रोकने के लिए उसे हिरासत में ले सकती है।