
कोरबा। सरकारी नौकरी का आकर्षण आज के समय में युवा पीढ़ी में बना हुआ है। वहीं अलग-अलग कारण से एक वर्ग ऐसा है जो कार्पोरेट सेक्टर को लेकर रूचि ले रहा है वहीं विकल्प नहीं मिलने पर लोग सामान्य कामकाज से जुडक़र जीविका चला रहे हैं। वेतन और मानदेय के भारी अंतर के अलावा सेवा शर्तो में असमानता के चक्कर में काम का दबाव जमकर बढ़ गया है। खुद के और परिवार के लिए समय नहीं निकाल पाने से अवसाद की समस्या लगातार जन्म ले रही है।
बात ही कुछ ऐसी है कि अलग-अलग सर्विस सेक्टर में संलग्न को अपना परफार्मेंस दिखाने के लिए जमकर मेहनत करनी पड़ रही है। हालात ऐसे हैं कि काम के बोझ में घंटे कम पड़ रहे हैं। वहीं अत्यधिक काम के दबाव और लंबे समय तक काम करने की आदत न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रही है। विशेष रूप से, अधिक काम करने की प्रवृत्ति अवसाद (डिप्रेशन) को बढ़ावा दे रही है। इसके फेर में लोगों का अपने स्वास्थ्य और निजी कार्यों के साथ-साथ सामाजिक व पारिवारिक सरोकारों के लिए निकाल पानी मुश्किल हो रहा है। इसके नतीजन न केवल संपर्क टूट रहे हैं बल्कि रिश्तों में दूरियां बढ़ रही है। वर्तमान दौर की यह तेजी से बढ़ती समस्या बनती जा रही है।
मस्तिष्क को नहीं मिल रहा आराम
आजकल कॉर्पोरेट सेक्टर, स्टार्टअप और यहां तक कि पारंपरिक नौकरियों में भी काम के घंटे बढ़ते जा रहे हैं। ऑफिस में 10-12 घंटे काम करना आम हो गया है, और इसके बाद भी ईमेल और मीटिंग्स का सिलसिला जारी रहता है। इस कारण लोग तनावग्रस्त रहने लगे हैं, जिससे उनकी कार्यक्षमता पर भी असर पड़ता है। लगातार काम करने से दिमाग को आराम नहीं मिल पाता, जिससे चिंता, अवसाद और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है।