नईदिल्ली, 2३ दिसम्बर ।
संपत्ति विवादों को सुलझाने वाले सिद्धांतों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने साफ किया कि किसी व्यक्ति को संपत्ति पर पहले से ही मौजूद अधिकारों की पुष्टि करने वाला समझौता डिक्री के लिए पंजीकरण अधिनियम 1908 के तहत पंजीकृत करना आवश्यक नहीं है। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि इस तरह के मामले में भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 के तहत कोई स्टाम्प ड्यूटी नहीं लगाई जाएगी, क्योंकि यह कोई नया अधिकार नहीं बनाती है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला मुकेश बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य (केस नंबर 14808/2024) के मामले में दिया है। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ एमपी हाई कोर्ट की इंदौर बेंच के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी।
हाईकोर्ट के फैसले में कलेक्टर ऑफ स्टैंम्प्स के फैसले को बरकरार रखा गया था, जिसमें अपीलकर्ता द्वारा समझौता कार्यवाही में संपत्ति को हासिल करने के लिए 6 लाख 67 हजार 500 रुपये की स्टाम्प शुल्क निर्धारित की गई थी। इसमें व्यक्ति के पास पहले से मौजूद अधिकार थे।