कोरबा। नगर पालिका परिषद दीपिका में पांचवीं बार चुनाव होने जा रहे हैं। भाजपा के लिए यह नगर पालिका सकारात्मक साबित हुई है। यहां से प्रथम तीन बार भाजपा के प्रत्याशी को जीत मिली जबकि चौथी बार कांग्रेस की टिकट पर जीते अध्यक्ष ने बाद में भाजपा का दामन थाम लिया। अब चर्चा इस बात की है कि क्या इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी चैन के मामले में जातिगत परिपाटी को ध्यान में रखेगी या इसमें कुछ परिवर्तन करेगी। हालांकि भाजपा के अलावा कई बागी, और ऐसे लोग भी अध्यक्ष पद के लिए टिकट की मांग कर रहे हैं जिनका कभी भी भाजपा से कोई वास्ता नहीं रहा।
1998 में कोरबा जिला गठन से लेकर 2002 तक दीपिका का स्वरूप ग्राम पंचायत का रहा। वर्ष 2002 में ही ग्राम पंचायत का उन्नयन जनसंख्या के आधार पर करते हुए इसे नगर पालिका में परिवर्तित कर दिया गया। दो वर्ष तक सामान्य तौर पर नगर पालिका के कामकाज प्रशासन के जिम्मे रहा। वर्ष 2004 में नगर पालिका के लिए प्रथम चुनाव हुआ। गठन से लेकर अब तक 4 चुनाव यहां पर संपन्न हुए हैं। नगर पालिका में दो बार भाजपा के बुगल दुबे और एक बार मनोज शर्मा अध्यक्ष निर्वाचित हुए। बदली हुई परिस्थिति में अप्रत्यक्ष प्रणाली से हुए चुनाव में कांग्रेस पार्षद संतोषी दीवान अध्यक्ष निर्वाचित हुई लेकिन लोकसभा चुनाव आने तक उनका हृदय परिवर्तित हुआ और वह भी भाजपा की हो गई। इस तरह से दीपिका नगर पालिका परिषद भाजपा के लिए संजीवनी साबित हुई।
नगर पालिका के पांचवें चुनाव में सांख्यिकी आंकड़े के अनुसार निर्वाचन आयोग ने यहां पर अध्यक्ष पद सामान्य घोषित किया है। इसके साथ विभिन्न दलों से अध्यक्ष पद को लेकर दावेदार सक्रिय हो गए हैं। अब भाजपा के भीतर से ही इस बात की चर्चा और मांग शुरू हो गई है कि जातिगत रूप से दूसरे सामान्य चेहरे को अध्यक्ष पद के लिए अवसर दिया जाना चाहिए। क्योंकि भाजपा के पास समर्पित कार्यकर्ता पर्याप्त है जो लंबे समय से पार्टी के लिए काम करते रहें है। तार्किक आधार पर अनेक कार्यकर्ताओं ने इस विषय को लेकर ऊपर तक पहुंचा है और संगठन का ध्यान आकर्षित किया है। उनकी ओर से कहा जा रहा है कि जब दूसरों के बारे में आप तुष्टिकरण की बात करते हैं तो कभी-कभी अपने क्षेत्र को भी ध्यान में रख लिया जाना चाहिए।
इनकी है दावेदारी
नगर पालिका परिषद दीपिका से पूर्व में पांच रहे और दो बार से पार्षद अरुनीश तिवारी, भाजपा युवा मोर्चा के पूर्व जिला पदाधिकारी अभिषेक सिंह, मनोज दुबे अध्यक्ष पद के लिए प्रमुख रूप से दावेदारी कर रहे हैं। खबर तो यह भी है कि पिछले चुनाव में निर्दलीय के हाथों परास्त हो चुके एक पार्षद भी इस मामले में पीछे नहीं है। जबकि भाजपा से बगावत करने के बाद फिर से इस संगठन में शामिल होने के दावे करने वाले एक नेता ने भी दावेदारी की कोशिश की है। और तो और अपराधिक प्रकरण में नामजद होने के चक्कर में मंडल का पद गवाने वाले नेताजी भी इस पद की दौड़ में है। सबसे हैरानी तो इस बात की है कि पूर्व अध्यक्ष के भाई जो कभी बीजेपी के लिए सहायक साबित नहीं हुए , वह भी चाहते हैं कि संगठन किसी भी आधार पर उन्हें अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनाए।