अब रोने को मजबूर है अनेक किसान
कोरबा। सत्ता और सरकारी आशीर्वाद से किसी भी इलाके की तस्वीर बदल सकती है और उसकी दुर्गति भी हो सकती है। बिजलीघर से निकली राखड़ को डंप करने के मनमाने काम को लेकर ऐसा तो कहा ही जा सकता है। पर्यटन केंद्र सतरेंगा के नजदीकी गांव गौपहरी में हालात कुछ ऐसे ही है।
बिजली की चकाचौंध के कारण देश और दुनिया में जिस कोरबा की ख्याति बनी है, उसका कोना-कोना राखड़ की मार झेल रहा है। विद्युत संयंत्रों से निकली राख शहर ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी फैला दी गई। जिन लोगों को राख के निस्तार की जिम्मेदारी सौंपी गई उन लोगों ने अपनी ऊंची पहुंच का उपयोग करते हुए राख को मनमानी के साथ डाल दिया। कहने का मतलब यह कि दुस्साहस ऐसा की जिसके आगे किसी का कोई जोर नही। पूरे कोरबा जिले की दुर्दशा राख के कारण हो रही है,लेकिन बड़े फलक पर जिस सतरेंगा को पर्यटन के नाम पर पहचान मिली, उस क्षेत्र को भी राखड़ परिवहन के कार्य से जुड़ी एक कंपनी के कारिंदों ने नहीं छोड़ा। सतरेंगा क्षेत्र के गौपहरीडुग्गू नामक गांव में सडक़ के किनारे से लेकर जंगल के अंदर तक राख डाल दी गई है।
ग्रामीण बताते हैं कि गौपहरी क्षेत्र में ब्लैक स्मिथ नामक एक कंपनी द्वारा राख डलवाई गई। ग्रामीणों के अनुसार जिस खेत में वह धान पैदा किया करते थे, ब्लैक स्मिथ कंपनी के बिचौलियों ने उन्हें पैसे देने का प्रावधान दिया और उनकी सहमति लेकर उन खेतों में राख भर दिया। कर्ताधर्ता के द्वारा किसानों को पहले कहा गया था कि राख डालने के बाद उसके ऊपर मिट्टी की परत बिछाई जाएगी जिस पर वे चाहे तो फिर से खेती कर सकते हैं। साथ ही कहा गया था की प्रति डिसमिल के हिसाब से उन्हें पैसे भी दिए जाएंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उनकी जमीन पर राख डाल दी गई। मिट्टी डालना उन्होंने उचित नहीं समझा और वादे के अनुसार जो पैसा देना था, वह भी दिए बिना कंपनी के लोग गायब हो गए।
जानकारों ने बताया कि बालकों ने ब्लैक स्मिथ कंपनी को सतरेंगा क्षेत्र में फ्लाई ऐश को डंप करने के लिए तीन तीन लाख टन के तीन आर्डर दिए। इस तरह इस क्षेत्र में 9 लाख टन राख कहीं भी फेंक दी गई है। सतरेंगा के समीप बसे गांव चुहरापारा के लोगों ने बताया की उनके जिन खेतों में राख डाली गई है उससे होकर पानी नाले में जाता है। इस तरह राख नाले नदी से होते हुए जल थल नभ के जरिए लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही है।
राख के इस अवैध कारोबार में लगे लोगों ने एक और अवैध कार्य को अंजाम दे डाला। सतरेंगा क्षेत्र तक राख पहुंचने के लिए जिस प्रधानमंत्री सडक़ योजना के तहत निर्मित रोड का उपयोग किया गया, उस पर भारी वाहन चलाने की मनाही है । नियम है कि इस सडक़ पर 12 टन भार क्षमता वाले वाहन ही चल सकते हैं लेकिन केंद्र सरकार के इस नियम की धज्जी उडाते हुए राख के कारोबारियो ने 35 से 40 टन लेकर चलने वाले भारी वाहनों को इस सडक़ पर खुलेआम दौड़ाया।
मंशा पर पलीता लग रहा
सतरेंगा को पर्यटन का स्वरूप देने के लिए राज्य सरकार ने करोड़ों करोड़ रुपए खर्च किए हैं यहां बड़ी तादाद में लोग प्रकृति की गोद में सुकून पाने आते भी हैं। अनुमान है कि लगभग 5 लाख पर्यटक यहां पहुंचकर बांगो बांध के अथाह जल का अवलोकन करते हैं और यहां स्वनिर्मित विश्व के सबसे बड़े शिवलिंग महादेव पर्वत का भी दर्शन करते हैं ।इस क्षेत्र से आसपास के लोगों को ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ सरकार को भी काफी उम्मीद है। माना जाता है कि सतरेंगा में आने वाले पर्यटकों की संख्या ऐसे ही बढ़ती रही तो एक दिन कोरबा के इस ग्रामीण क्षेत्र का चौमुखी विकास होगा। आय के स्रोत बढ़ेंगे और वन के संरक्षण संवर्धन के प्रति लोग और गंभीर होंगे। लेकिन जिस तरह से सतरेंगा क्षेत्र को बर्बाद किया गया है, उसके कितने गंभीर परिणाम भविष्य में भुगतने होंगे इसका अनुमान तो सहज ही लगाया जा सकता है।