हजारीबाग, ०४ दिसम्बर । हजारीबाग व्यवहार न्यायालय में पुलिस ने चार मुन्ना भाइयों को फर्जी दस्तावेज और मुहर की मदद से जाली एडमिट कार्ड तैयार कर इंटरव्यू देने के आरोप में पकड़ा गया है। पकड़े गए चार में तीन आरोपित नालंदा और एक आरोपित पटना के बख्तियार का रहने वाला है।सुबह करीब दस बजे आरोपित उस वक्त पकड़े गए जब इनका रौल नंबर, शनिवार को जारी रौल क्रमांक से अलग निकला और गड़बड़ी की जांच शुरू हुई। जांच में यह पता चला कि जिस नंबर क्रमांक से ये अभ्यर्थी साक्षात्कार देने पहुंचे थे, वह तीन दिन पहले 29 नवंबर को ही खत्म हो चुका है।पकड़े गए आरोपित शंकर कुमार पिता उपेंद्र यादव (सिलाव नालंदा ), सोनू कुमार और दिलीप कुमार पिता गणौरी यादव (सुरुमपुर नालंदा) तथा अभिषेक कुमार, पिता गुड्डू सिंह (दियारा अथमनगोला पटना) के हैं। गिरफ्तार आरोपितों में सोनू कुमार और दिलीप कुमार दोनों सगे भाई हैं। इसके बाद दस्तावेज की जांच में एडमिट कार्ड पर लगाई गई मुहर से इनकी पोल खुल गई। इसके बाद सुरक्षा में तैनात जवानों ने इन्हें कब्जे में ले लिया और इसकी सूचना कोर्ट रजिस्ट्रार को दी। सूचना पर पहुंचे सदर थाना प्रभारी इंस्पेक्टर ललित कुमार ने आरोपितों को अपने कब्जे में ले लिया और इनसे थाने में पूछताछ की जा रही है। आरोपितों से पूछताछ की जा रही है। इस बाबत सदर थाना में फर्जीवाड़ा और जाली मुहर और हस्ताक्षर की मदद से एडमिट कार्ड तैयार करने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। संभावना जताई जा रही है कि इसकी गहराई से जांच होगी तो एक बड़े गिरोह का पर्दाफाश हो जाएगा। ज्ञात हो कि पिछले एक सप्ताह से कोर्ट में चतुर्थवर्गीय कर्मचारी बहाली को लेकर साक्षात्कार चल रहा है। जानकारी के अनुसार, 119 पदों के लिए 58 हजार आवेदन आया था। इनमें करीब 28 हजार आवेदन रद्द कर दिए गए हैं। शेष बचे लोगों को एडमिट कार्ड जारी कर साक्षात्कार के लिए बुलाया गया है।पकड़े गए आरोपितों ने बताया कि वे भी लोग आवेदन किए थे, लेकिन उनका एडमिट कार्ड नहीं आया। इसके बाद अन्य साथियों की मदद से एडमिट कार्ड तैयार कर साक्षात्कार देने आए थे। साक्षात्कार की हर दिन की समीक्षा हो रही है और पूरे समय जिला सत्र न्यायाधीश इस पर नजर रखते हैं। शनिवार को संदिग्ध की जांच पर यह स्पष्ट हो गया कि ये लोग जाली दस्तावेज तैयार कर साक्षात्कार देने आए थे। इन्हें विधिवत पकड़ कर पुलिस को सौंप दिया है। – मोहित कुमार, रजिस्ट्रार, हजारीबाग व्यवहार न्यायालय।