नईदिल्ली, ०४ जुलाई [एजेंसी]। एनसीपी को झटका दे शिंदे सरकार में शामिल हुए अजित पवार ने बीते दिन महाराष्ट्र की राजनीति में भूकंप ला दिया। अजित पवार अपने साथ न सिर्फ 40 विधायकों को लाने का दावा कर रहे हैं, बल्कि एनसीपी पर भी अपना हक जता रहे हैं। अजित के साथ एनसीपी के 8 विधायकों ने महाराष्ट्र सरकार में मंत्री पद की शपथ ली है। उधर, शरद पवार भी एक्टिव मोड में हैं। उन्होंने अजित के शपथ ग्रहण में शामिल हुए 8 विधायकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। अब दोनों खेमों में पार्टी पर हक जमाने को लेकर जंग चल रही है। अजित ने 4 सालों के अंदर दूसरी बार पार्टी से बगावत की है, जिसके बाद पार्टी टूटने की कगार पर आ पहुंची है। हालांकि, इससे पहले भी देश में कई बार पारिवारिक कलह के चलते पार्टियों में टूट देखने को मिली है। आइए, जानें किन राजनीतिक पार्टियों में पारिवारिक वर्चस्व की लड़ाई टूट की वजह बनी…अजित पवार की बगावत कोई एकाएक नहीं हुई है। इसके पीछे भी पार्टी पर वर्चस्व की लड़ाई है। दरअसल, शरद पवार ने हाल ही में अपनी बेटी सुप्रिया सुले और पार्टी नेता प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया था। शरद पवार के इस फैसले से भतीजे अजित पवार काफी नराज चल रहे थे। भतीजे अजित को चाचा पवार ने कोई भी पद नहीं दिया था, यही कारण है कि वह बगावत कर शिंदे सरकार में शामिल होकर डिप्टी सीएम बने हैं। इस बगावत के बाद से पार्टी टूट की कगार पर है। हरियाणा के दिग्गज नेता और पूर्व उपप्रधानमंत्री देवी लाल चौटाला की पार्टी इनेलो (इंडियन नैशनल लोकदल) में भी टूट का कारण पारिवारिक विरासत की राजनीति रही। ढ्ढहृरुष्ठ के तत्कालीन प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला के बेटे अभय चौटाला के साथ उनके भतीजे दुष्यंत चौटाला की एक रैली में लड़ाई के बाद पार्टी टूटी थी। दरअसल, ओमप्रकाश चौटाला के जेल में होने के चलते अभय चौटाला पार्टी का नेतृत्व कर रहे थे और उन्होंने दुष्यंत और उनके भाई दिग्विजय चौटाला को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इसके बाद दुष्यंत चौटाला ने उसी रैली से अलग पार्टी बनाने का ऐलान किया और यहां से आईएनएलडी टूट गई और जेजेपी (जननायक जनता पार्टी) का जन्म हुआ। जेजेपी हरियाणा में भाजपा की खट्टर सरकार में शामिल है। आंध्र प्रदेश में भी परिवारिक अंतर्कलह पार्टी में टूट की वजह बन चुकी है। दरअसल, फिल्मकार एनटी रामाराव ने 1983 में टीडीपी का गठन किया था। इसके नौ महीने बाद ही रामाराव आंध्र के 10वें सीएम बन गए। एनटी रामाराव 1995 में भी मुख्यमंत्री थे, तभी उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने पार्टी से बगावत कर डाली। नायडू के साथ कई विधायक साथ आ गए और रामाराव को कुर्सी गंवानी पड़ी।1996 में रामाराव का निधन हो गया, जिसके बाद चंद्रबाबू ने सरकार से लेकर पार्टी तक अपना वर्चस्व कायम कर लिया। पार्टी में इस टूट को देश में सबसे बड़ा सियासी उलटफेर माना जाता है।सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह के बीच अनबन भी यूपी की सियासत की बड़ी चर्चा बनी थी। दोनों में मतभेद के चलते चाचा शिवपाल सपा से अलग हो गए और उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली। शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के नाम से पार्टी बनाई। हालांकि, सपा के पूर्व अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद दोनों नेता साथ में आ गए हैं। बिहार में भी परिवार की लड़ाई पार्टी में टूट का कारण बनी थी। दरअसल, बिहार के दिग्गज नेता और राजनीति के मौसम विज्ञानी कहे जाने वाले रामविलास पासवान ने 2000 में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) का गठन किया था। इसके बाद वो कई बार बिहार के साथ केंद्र की सत्ता में भी रहे।सन 2020 में पासवान के निधन के बाद ही पार्टी टूट गई। दरअसल, रामविलास के निधन के बाद पार्टी की कमान उनके बेटे चिराग पासवान ने संभाली, लेकिन वर्ष 2021 में पार्टी के 6 में से 5 सांसदों ने बगावत कर दी।पार्टी में बगावत का नेतृत्व चिराग के चाचा पशुपति पासवान ने किया था। इस लड़ाई के बाद पार्टी दो गुटों में बंट गई । चिराग की पार्टी का नाम लोजपा (रामविलास) तो उनके चाचा की पार्टी का नाम राष्ट्रीय लोजपा हो गया। —————-