चंडीगढ़, २७ दिसम्बर ।
वर्ष 2008 में परमाणु संधि को लेकर जब वामपंथी दलों ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो सरकार संकट में आ गई। ऐसे मौके पर शिरोमणि अकाली दल जो एनडीए का हिस्सा था के पास आठ सांसद थे। साफ लग रहा था कि मनमोहन सिंह की सरकार गिर जाएगी लेकिन शिरोमणि अकाली दल के एक सांसद सुखदेव सिंह लिबड़ा ने पार्टी लाइन से हटकर अविश्वास प्रस्ताव के लिए हुए मतदान में गैर-हाजिर रहकर डॉ. मनमोहन सिंह को समर्थन दिया।उनके इस कदम से एनडीए में अकाली दल की काफी आलोचना हुई लेकिन पंजाब में उनके इस कदम की सराहना भी हुई। दिलचस्प बात यह है कि सुखदेव सिंह लिबड़ा लोकसभा में खुद ही पार्टी के व्हिप थे और उन्होंने सभी आठ सांसदों को अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान करने को कहा। लेकिन वह खुद ही गैर हाजिर रहकर डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार को गिरने से बचा लिया।
वहीं, पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के देहांत पर दुख प्रकट किया है। उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, डॉ. मनमोहन सिंह जी के निधन के साथ ही सार्वजनिक जीवन में राजनेता और सभ्य मूल्यों का एक युग समाप्त हो गया।डॉ. साहब ने व्यक्तिगत जीवन में सादगी के साथ-साथ राजनीति में शालीनता, शिष्टता और ईमानदारी को भी हमेशा जोड़े रखा। सुखबीर सिंह ने लिखा, मुझे याद है कि डॉ. साहब का मेरे पिता और अकाली नेता सरदार प्रकाश सिंह बादल के साथ कितना घनिष्ठ व्यक्तिगत संबंध थे।
यह हमारे देश के सामने आने वाली समस्याओं के प्रति डॉ. साहब के दृष्टिकोण का ही परिणाम था कि वे प्रधानमंत्री के रूप में भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषाई और क्षेत्रीय विविधता के प्रति प्रतिबद्ध रहे और संघीय ढांचे को हमारे संविधान और हमारी राष्ट्रीय राजनीति की मूल और परिभाषित विशेषता मानते रहे।डॉ. साहब अल्पसंख्यकों की भावनाओं और हितों की सुरक्षा को हमारे देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण मानते थे और उन्होंने उनके धार्मिक मामलों में किसी भी सरकारी दखलता का दृढ़ता से विरोध किया। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें।