नईदिल्ली, ०२ जुलाई [एजेंसी]। गोधरा कांड के बाद गुजरात में 2002 में हुए दंगों से जुड़े मामले में तीस्ता सीतलवाड़ को गुजरात हाई कोर्ट के तत्काल आत्मसमर्पण करने के दिए गए आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार देर रात रोक लगा दी। शीर्ष कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की विशेष बेंच ने तीस्ता को एक सप्ताह की अंतरिम राहत देते हुए इस अवधि के दौरान उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाई। इससे पूर्व दिन में गुजरात हाई कोर्ट ने सीतलवाड़ की नियमित जमानत याचिका खारिज करते हुए उन्हें तुरंत आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था। इस आदेश के खिलाफ तीस्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंची थीं। हालांकि, शीर्ष कोर्ट में भी पहले उन्हें राहत नहीं मिल पाई। शाम करीब सवा छह बजे इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा ने की।दोनों जज इस बात पर सहमत नहीं हो पाए कि जमानत दी जाए या नहीं। इसके बाद पीठ ने मामला चीफ जस्टिस को भेज दिया। इस पर सीजेआइ ने मामले की सुनवाई के लिए जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय बेंच गठित की। इसमें अन्य सदस्य जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता रहे। इस बेंच ने रात सवा नौ बजे मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए तीस्ता को एक सप्ताह की अंतरिम राहत दे दी। पीठ ने कहा कि एक सामान्य अपराधी भी अंतरिम राहत का हकदार है। गुजरात सरकार की तरफ से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये साधारण केस नहीं है। इस पर कोर्ट ने कहा कि एक सप्ताह अंतरिम जमानत बढ़ाने में दिक्कत ही क्या है। अहमदाबाद से राज्य ब्यूरो के अनुसार, शनिवार दिन में गुजरात हाई कोर्ट ने तीस्ता की नियमित जमानत याचिका खारिज हुए उन्हें तुरंत आत्मसमर्पण करने को कहा था।जस्टिन निर्झर देसाई ने कहा कि आरोपित ने लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को अस्थिर करने का षड्यंत्र रचा और तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान पीएम नरेन्द्र मोदी की छवि धूमिल करते हुए उन्हें जेल भेजने की कोशिश की। कोर्ट ने सीतलवाड़ के वकील का आत्मसमर्पण के लिए 30 दिन का समय देने का अनुरोध भी खारिज कर दिया।अहमदाबाद अपराध शाखा ने दंगों के दौरान फर्जी शपथ पत्र, झूठे गवाह बनाकर कई निर्दोष लोगों को जेल भिजवाने के आरोप के चलते 25 जून, 2022 को तीस्ता को गिरफ्तार किया था। पूर्व आईपीएस आरबी श्रीकुमार व संजीव भट्ट भी इस मामले में सह आरोपित हैं। इनके खिलाफ धारा 468 (कूट दस्तावेज तैयार करने, धोखाधड़ी) व धारा 194 (झूठे गवाह बनाकर कठोर सजा की साजिश रचने) के मामले दर्ज हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि तीस्ता को जमानत देने से गलत संदेश जाएगा। उन्होंने राजनीतिक दल-नेताओं के इशारे पर लोकतात्रिक सरकार को अस्थिर करने का प्रयास किया। फर्जी शपथ पत्र एवं झूठे गवाहों के जरिए विविध मंचों पर लोगों-संस्थाओं, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को गुमराह किया। तीस्ता ने राजनीतिक लाभ व खुद को सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में स्थापित करने के लिए दंगा पीडि़तों का इस्तेमाल किया।उल्लेखनीय है कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने तीस्ता को पद्म श्री अवार्ड से सम्मानित किया तथा उन्हें योजना आयोग की सदस्य बनाया था। बीते वर्ष गिरफ्तारी के बाद अहमदाबाद के सेशन कोर्ट ने 30 जुलाई 2022 को तीस्ता की जमानत याचिका अस्वीकृत कर दी थी। तीन अगस्त, 2022 को हाई कोर्ट में जमानत याचिका के साथ ही तीस्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अंतरिम जमानत के लिए याचिका लगाई थी। सितंबर 2022 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिल गई। यह गुजरात हाई कोर्ट के जमानत पर निर्णय तक के लिए दी गई थी। —————–