श्रीनगर, १५ जुलाई [एजेंसी]। दक्षिण कश्मीर में धान के खेत अब लगातार घट रहे हैं। उनकी जगह बस्तियां या फिर बाग और वह भी सेब के नजर आने लगे हैं। बीते 30 वर्ष के दौरान अनंतनाग, पुलवामा, शोपियां और कुलगाम समेत समूचे दक्षिण कश्मीर में धान की कृषि में इस्तेमाल होने वाली भूमि में पांच प्रतिशत की कमी आई है।बगीचों की भूमि में 4.29 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। धान की खेती और कृषि भूमि में कमी को लेकर स्थानीय विशेषज्ञ चिंतित हैं। उनका मानना है कि आने वाले समय में खाद्यान्न उत्पादन में कमी आ जाएगी। कश्मीर के पांच शोधकर्ताओं रेहाना रसूल, आबिदा फैयाज, मिफता उल शफीक, हरमीत सिंह और परवेज अहमद ने उपग्रह से मिली तस्वीरों का इस्तेमाल करते हुए कश्मीर में कृषि भूमि में आ रहे बदलाव का पता लगाया है।उन्होंने वर्ष 1990 से वर्ष 2017 तक पूरे दक्षिण कश्मीर में कृषि भूमि के उपयोग व संबंधित गतिविधियों का गहन अध्ययन किया है। अध्ययन में वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि 27 वर्ष के अंतराल में पांच प्रतिशत कृषि भूमि कम हुई। बागवानी के लिए इस्तेमाल हो रही भूमि में 4.29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।सभी शोधकर्ता भूविज्ञान एवं क्षेत्रीय विकाय, स्कूल आफ अर्थ एंड एनवायरमेंटल साइंस कश्मीर विश्वविद्यालय, भूविज्ञान विभाग श्री प्रताप कालेज कलस्टर विश्वविद्यालय श्रीनगर से संबंधित हैं। शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन दक्षिण कश्मीर के 113 गांवों पर किया है। शोध में पता चला कि कुछ वर्षों के दौरान इन गांवों में बागवानी को लेकर स्थानीय किसानों में रुझान बड़ा है। वह पारंपरिक खेती छोड़ सेब के लिए बाग तैयार कर रहे हैं। इससे जहां दक्षिण कश्मीर में खाद्यान्न उत्पादन और खाद्य सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव होगा वहीं बागवानी में विस्तार होने से मृदा स्वास्थ्य प्रभावित होगा। शोध के मुताबिक, दक्षिण कश्मीर में कृषि क्षेत्र विशेषकर जो धान की खेती में आता है, में 278 वर्ग किमी क्षेत्र घटा है। इसकी तुलना में बागवानी का क्षेत्र में 233 वर्ग किलोमीटर का विस्तार हुआ है। दक्षिण कश्मीर में आज भी कृषि भूमि 19.80 प्रतिशत है। बागवानी भूमि जो वर्ष 1990 में 3.2 प्रतिशत थी जो वर्ष 2017 के अंत तक 7.49 प्रतिशत हो चुकी थी। अध्ययन में 1990, वर्ष 2002 और वर्ष 2017 के दौरान उपग्रह द्वारा ली तस्वीरों व जमा डेटा को ध्यान में रखते हुए शोध किया है। विश्व प्रसिद्ध भू वैज्ञानिक प्रो शकील रोमशू के मुताबिक, कुछ वर्षों के दौरान जिस तरह से सरकार ने बागवानी और नकदी फसलों को प्रोत्साहित किया है। उससे कई किसानों ने अपने खेतों को बागों में बदला है। बाग लगाने पर आपको बार बार उसमें ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है, मुनाफा भी ज्यादा है।धान की खेती में मेहनत ज्यादा है, सिंचाई और खाद भी बागवानी की तुलना में ज्यादा है। बागवानी में सब्सिडी भी है। आगे चलकर इसके नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेंगे। बागों में जिस तरह के कीटनाशक इस्तेमाल होते हैं, जो दवाएं इस्तेमाल होती हैं, वह जमीन की उर्वर शक्ति और स्वास्थ्य को नुकसान भी पहुंचाते हैं।मोहम्मद यूसुफ गड्डा नामक एक फल व्यापारी ने कहा कि पांच कनाल में एक सेब का बाग आपको साल में कम से से दो लाख रूपये तक देता है जबकि पांच कनाल में धान का खेत एक लाख की फसल नहीं देगा।