कोरबा। शहर के बड़े हिस्से की जनता कोयला और राख परिवहन करने के साथ कई तरह की परेशानियां पैदा करने वाले वाहनों की आवाजाही से संबंधित समस्याओं के कारण परेशान है। जनता इस बात से नाराज और हैरान है कि उन्होंने जिन जनप्रतिनिधियों को कुछ साल पहले चुना था, उनकी जवाबदेही कहीं नजर नहीं आ रही है। जिन वार्डों से इस समस्या का सीधा वास्ता है, वहां के पार्षदों ने कुल मिलाकर अपने दायित्व से मुंह मोड़ लिया है। हो सकता है कि परेशान जनता इस मुद्दे को लेकर आगामी दिनों में पार्षदों के खिलाफ मोर्चा खोलने की मानसिकता भी बना सकती है।
वैकल्पिक रास्तों को तैयार करने के लिए कार्पोरेट सेक्टर के द्वारा करोड़ों रूपए पिछले वर्षों में खर्च किये गए थे। ऐसे रास्ते दर्री बरॉज, रूमगरा चौराहा, बालकोनगर परसाभाठा, तुलसीनगर, राताखार, प्रगतिनगर दर्री की दिशा में बनाए गए हैं। इसके पीछे उद्देश्य यही था कि भारी वाहनों को उनकी दिशा में भिजवाने के लिए ये रास्ते कारगर साबित हो और किसी भी वजह से वाहनों की आवाजाही शहर के रिहायशी क्षेत्र के बीच से न हो। योजना बनाने के दौरान मुख्य रूप से इस बात को ध्यान में रखा गया कि क्षेत्र की जनता को राहत मिले, जो कि भारी वाहनों के बीच से गुजरने के कारण परेशान हो रही है। योजना बनाने से लेकर क्रियान्वयन के बावजूद लगातार राताखार, तुलसीनगर, सीएसईबी चौक, बुधवारी बाजार, कुआंभ_ा, मुड़ापार, अमरैया, रामनगर, इमलीडुग्गू इलाके से कोयला और संयंत्रों की राख का परिवहन करने वाले वाहन पार हो रहे हैं। और तो और 24 घंटे इनकी आवाजाही निर्बाध रूप से जारी है। उपर से हालिया समस्या लोगों के लिए सिरदर्द बनी हुई है। रेलवे की ओर से अधिकतम संख्या में कोयला लोड मालगाडिय़ों का परिचालन कराने के कारण लगातार शहर के रेल फाटक बंद किये जा रहे हैं। इसके चलते अनेक रास्तों पर भारी वाहनों का जाम लग रहा है और इससे जनता हलाकान है। सबसे चिंता की बात ये है कि शहर की बड़ी समस्या बनने और इस बारे में पर्याप्त जानकारी होने पर भी क्षेत्रीय स्तर के जनप्रतिनिधियों ने आंखों पर पट्टी बांध रखी है और कानों को इशारा कर दिया है कि वे इस तरह की परेशान करने वाली आवाज को हासिए पर करे। कांग्रेस और भाजपा की टिकट पर संबंधित वार्डों से लोगों ने साढ़े तीन वर्ष पहले स्थानीय चेहरों को पार्षद चुनने के साथ बड़ी उम्मीद से साकेत भवन भेजा था। जनता की सोच थी कि जनहित से जुड़े मुद्दों पर ये माननीय उनकी मदद करेंगे और आवाज भी बनेंगे लेकिन यह कल्पना से ज्यादा और कुछ साबित नहीं हो सका। खासतौर पर वर्तमान की समस्या को लेकर पार्षदों के उदासीन रवैये ने लोगों को न केवल नाराज किया है बल्कि उनके प्रति स्थायी धारणाओं को खारिज भी कर दिया।