जांजगीर नैला। आज बुधवार 6 नवंबर की सुबह से ही छठव्रतियों ने निर्जला उपवास रखा है। शाम को प्रसाद के रूप में खरना ग्रहण किया जाएगा। जिसमें प्रसाद के रूप में रोटी और खीर ली जाती है।
पुत्र प्राप्ति और पारिवारिक शांति की कामना से की जाने वाली छठ पूजा की शुरूआत 5 नवंबर को हुई। छठमाता एवं सूर्य देवता को समर्पित इस पर्व की तैयारी में भोजपुरी समाज व छठपूजा आयोजन समिति के पदाधिकारी एवं सदस्य जुट गए हैं। व्यवसायिक एवं अन्य कारणों से यहां आकर बस चुके हजारों की संख्या में बिहार एवं उत्तर प्रदेश के निवासियों द्वारा मनाया जाने
वाला यह पर्व अब छत्तीसगढ़ की संस्कृति में भी मिलने लगा है। इसके बारे में यह मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से छठ माता की आराधना करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। आमतौर पर पूरे भारत में मनाए जाने वाले अन्य पर्वों में किसी भगवान की मूर्ति को प्रतीक मानकर पूजन किया जाता है, लेकिन छठ पर्व में संपूर्ण पृथ्वी को अपनी ऊर्जा से संचारित करने वाले सूर्य देव की प्रत्यक्ष पूजा की जाती है। यह एकमात्र पर्व है, जिसमें पहले डूबते हुए सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। 5 नवंबर को नहाय-खाय के साथ छठ पर्व शुरू हो गया। बगैर लहसून एवं प्याज उपयोग किए लौकी की सब्जी और भात, चना दाल और चावल खाकर शुद्धीकरण किया गया। 7 नवंबर की शाम डूबते हुए सूरज को अघ्र्य दिया जाएगा। नदी के घाट में संध्या पूजा के बाद छठव्रती वापस घर लौटेंगे और भजन-कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करेंगे। अगले दिन हम 8 नवंबर की सुबह उगते हुए सूरज की पूजा कर अघ्र्य दिया जाएगा। इसके बाद ही 36 घंटे के निर्जला उपवास तोड़ा जाएगा। छठ पूजा की तैयारी जोर-शोर से की जा रही है। नगर के भीमा तालाब, चांपा के हसदेव नदी के डोंगाघाट, केराझरिया महादेव घाट, अखराघाट, पाढ़ीघाट के प्रमुख रूप से छठ पूजा होगी। इनमें सभी घाट में साफ-सफाई कराई जा ह रही है।