जांजगीर चांपा। सिंचाई विभाग में अफसरों की बड़ी लापरवाही सामने आई है। विभाग ने नहरों के निर्माण के लिए जमीन का अधिग्रहण 1967 में किया पर उसका नामांतरण करना भूल गया। 55 साल तक जमीन का नामांतरण नहीं कराने का परिणाम यह निकला कि जिनसे जमीन अर्जित की गई उनकी मौत हो गई और वह जमीन उनके परिजनों के नाम चढ़ गया। अब चूंकि जमीन उनके नाम पर है।
इसलिए वे दोबारा मुआवजे की मांग को लेकर ग विभाग में आवेदन लगाने लगे हैं। जमीन विवाद के मामले बढ़े तो विभाग जागा और उसने रजिस्ट्री ऑफिस से रिकॉर्ड निकालकर जमीन को सिंचाई के विभाग के नाम करने की शुरुआत की। विभाग के अफसरों का कहना है कि चूंकि मामला सालों पुराना है। इसलिए उन्हें न उसके रिकॉर्ड खोजने में परेशानी हो रही है। फिर भी वे – रजिस्ट्री ऑफिस व कलेक्ट्रेट से रिकॉर्ड निकालकर एक गांव की जमीन का मिलान व उसका नामांतरण कराने की शुरुआत कर दी है। हसदेव बांगो बांध का निर्माण 1963 में किया गया। उसके बाद 1967 में दीं डैम का निर्माण कराया गया। हसदेव बांगो परियोजना नहर परियोजना के तहत इसके वहां से बांयी और दायीं तट नहर शाखा 1970 के आस-पास बांयी और दायीं तट शाखा का निर्माण कराया गया था। इसमें दायीं तट नहर में 42 किमी अकलतरा और 22.4 किमी जांजगीर नहर शाखा शामिल थी। साल 1970 में नहर बनाने के लिए जमीन का अधिग्रहण किया पर रजिस्ट्री के बाद – नामांतरण नहीं कराया गया। इसके चलते नहर बनने के बाद भी उस जमीन पर मुआवजा लेने वाले किसानों के नाम हैं। 55 साल में कई पीढ़ी बदल गई। कुछ ने अपनी जमीन बेच दी। ऐसे में अब प्रशासनिक और सिंचाई विभाग के अफसरों की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
20 दिन पहले नवागढ़ में कोटिया नहर के किनारे मकान बनाने वाले विकास गौरहा ने तहसील में जमीन सीमांकन कराने का आवेदन दिया। पर कार्यालय में उसकी जमीन का रिकॉर्ड ही नहीं मिला। ऐसे में आवेदक जब आत्महत्या करने की चेतावनी देते हुए प्रशासन को आवेदन सौंपा तो सिंचाई विभाग और प्रशासन के कर्मी एक्टिव हुए और कलेक्ट्रेट से रिकॉर्ड ढूंढकर उसकी जमीन का सीमांकन कराया। टीम ने जब अगल-बगल के घरों में नापजोख की तो पता चला कि किसी सिंचाई विभाग की जमीन पर बाउंड्री बना ली तो किसी ने कमरे का निर्माण कर लिया। ऐसे में टीम अवैध निर्माण पर चिह्न लगाकर बिना कार्रवाई किए ही लौट गई।
नहरिया बाबा से खोखरा माइनर तक नहर के दोनों और सिंचाई विभाग की जमीन पर अवैध कब्जे हो गए हैं रिकार्ड दुरुस्त नहीं होने से विभाग सिर्फ नोटिस देने तक की सीमित है
खोखरा में जमीन अधिग्रहण के अलावा विभिन्न प्रयोजन के लिए विभाग ने किसानों से जमीन खरीदी थी। रजिस्ट्री के बाद जमीन का नामांतरण नहीं कराया तो वह जमीन किसानों के खाते में ही दर्ज रही। पिता की मौत के बाद वह जमीन परिवार के अन्य सदस्यों में बंट गई। जब उन्होंने जमीन का नापजोख कराया तो पता चला कि उनकी जमीन से नहर गुजरी है। जानकारी के अभाव में उन्होंने दोबारा मुआवजा करने के लिए आवेदन कर दिया। अब विभाग के कर्मचारी पुराने रिकॉर्ड को खंगाल रहे हैं, ताकि मामला सुलझाया जा सके।