कोरबा। नगर पालिक निगम कोरबा के जिम्मेदार अधिकारियों के दिमाग और अदूरदर्शी सुझाव की दाद देनी पड़ेगी। जनता से टैक्स के रूप में मिलने वाले पैसों का कैसा उपयोग और दुरुपयोग करना है, यह इनसे बेहतर कोई नहीं जान सकता। अनुपयोगिता में उपयोगिता ढूंढने का भी इनका गजब का हुनर है।
शहर में हो रहे अद्भुत विकास की लिखी और लिखाई जा रही इबारत में टाईल्सीकरण पर रह-रह कर निगाह जाती है कि इसका आखिर औचित्य और उपयोगिता कहां पर कितनी है या सिर्फ सुंदरता के नाम पर सरकारी धन को खपाना है, इसलिए कुछ भी करा दो, बोलने वाला कौन है..!
हम बात कर रहे हैं निगम क्षेत्र के सडक़ों की जो बारिश की मार से अपनी औकात पर आ गए हैं। इनकी मरम्मत के नाम पर शुरू हुआ विवाद तो हाईकोर्ट तक पहुंच गया है, फजीहत के बाद अब डामरपोती शुरू हो गई है।
इधर दूसरी तरफ कुछ सडक़ों के किनारे-किनारे खाली जगहों पर कई दिनों से टाइल्स बिछाए जा रहे हैं। एक तरफ अतिक्रमण तो दूसरी तरफ स्लैब वाली नाली, किन्तु इन दोनों पर टाइल्स/पेवर ब्लॉकिंग के काम हुए हैं। काम होते ही फिर वही ठेला,गुमटी रखा गया है, फुटपाथ नाम की चीज तो है नहीं। दूसरी तरफ स्लैब तक के ऊपर टाइल्स लगाया गया है जो चंद दिनों में उखडऩा भी शुरू ही गए हैं। इनका लाभ इंसानों को मिले या न मिले लेकिन घूरे(कचड़े) के दिन जरूर फिर गए। कहाँ सीलन वाली घास-फूस की जमीन पर उन्हें फेंका जाता था,अब तो टाइल्स नसीब हो गई है। इंसान तो इस पर चलते नहीं,पर गौवंशों सहित अन्य वंशों का गोबर/गंदगी जरूर बिखरे नजर आते हैं। इसी तरह से मुख्य सडक़ हो या आंतरिक इलाकों के मार्ग, पेवर ब्लॉक कूड़ा-कचरा फेंकने के ही काम आ रहा है और सडक़ें बदहाली के आंसू रो रही हैं।