संभल, १९ दिसम्बर।
खग्गू सराय की तंग गलियां और अपने घरों के बीच 46 साल बाद लौटे देवेंद्र रस्तोगी अपनी जड़ों को तलाशते हुए भावुक हो गए। 1978 के दंगों के दौरान मजबूरी में अपना घर छोडऩे वाले देवेंद्र ने जब मंदिर में पूजा-अर्चना की तो पुरानी यादें ताजा हो गईं। देवेन्द्र ने कहा कि यहीं हमारा बचपन बीता था। बाजार में हमारी परचून की दुकान थी, लेकिन दंगों ने सब छीन लिया। वर्तमान सरकार और प्रशासन ने भी हिंदुओं की बात तो दूर जान गंवाने वालों के पीडि़त परिवारों को आर्थिक सहायता तक नहीं की थी। देवेंद्र रस्तोगी बताते हैं कि 1978 के दंगे उनके जीवन का सबसे दर्दनाक दौर था। उस समय मुहल्ला खग्गू सराय में हिंदू-मुस्लिम परिवार साथ रहते थे, लेकिन दंगे के दौरान मुस्लिम बहुल इस इलाके में डर का माहौल बन गया।
हिंदू परिवारों ने अपनी संपत्तियां औने-पौने दामों में बेच दीं और इलाका छोड़ दिया। उनका परिवार भी यहां से पलायन कर गया और मोहल्ला कोटपूर्वी में जाकर बस गया।देवेंद्र ने उस दर्दनाक घटना को याद करते हुए बताया कि 1978 के दंगों में 100 से अधिक हिंदुओं की निर्मम हत्या कर दी गई थी। उस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और रामनरेश यादव मुख्यमंत्री थे। हालांकि, दंगे के दौरान यहां रहने वाले हिंदू परिवारों को शारीरिक और आर्थिक नुकसान नहीं पहुंचा, लेकिन भय इतना था कि सभी को धीरे धीरे अपना घर छोडऩा पड़ा।
उन्होंने उस समय के प्रशासन पर आरोप लगाया कि तत्कालीन जिलाधिकारी फरहत अली ने मौके पर कोई एक्शन नहीं लिया था और ना ही कोई फोर्स भेजी थी। इसी वजह से दंगाईयों के हौंसले ओर बुलंद होते चले गए। अगर समय पर कोई कार्रवाई की होती तो इतना बढ़ा सांप्रदायिक दंगा कभी नहीं होता। उनका कहना है कि बीच सडक़ों पर हिंदुओं की निर्मम हत्याएं की जा रही थीं। दंगाइयों ने किसी पर भी रहम नहीं किया। जो सामने आया उसकी हत्या करते चले गए। कहा कि 1978 के दंगों के बाद शहर के सामाजिक ताने-बाने में बड़ा बदलाव आया।
हिंदू परिवार बड़ी संख्या में पलायन कर गए, और मुस्लिम समुदाय की आबादी इलाके में बढ़ गई। इस घटना के बाद शहर में गंगा-जमुनी तहजीब की परंपरा पर गहरा असर पड़ा। दशकों बाद मंदिर खुलने के बाद अपने पैतृक मोहल्ले में पहुंचे देवेंद्र रस्तोगी ने मंदिर में पूजा के बाद कहा कि मंदिर आज भी वैसा ही है, लेकिन वो माहौल और अपनापन अब नहीं रहा। बचपन की ये गलियां, ये घर, सब देखकर दिल भर आया। हम भले ही यहां से चले गए, लेकिन यादें कभी नहीं गईं।
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