जांजगीर। होली के बाद पडऩे वाले पहले सोमवार को देश भर के अग्रवाल समाज द्वारा शीतला माता की विशेष पूजा की जाती है। खास बात यह है कि इस दिन इस समाज के किसी भी घर में चुल्हा नहीं जलता अर्थात गर्म भोजन या खाने की कोई भी सामग्री नहीं बनती। इस दिन शीतला माता को बासी भोग लगता है, घर के लोग भी बासी ही खाते हैं, जिसे बड़ा बांसोड़ा कहा जाता है। जिला मुख्यालय में भी अग्रवाल समाज के द्वारा शीतला माता की पूजा की गई। अमूमन होली के बाद गर्मी तेज पडऩे लगती है, साथ ही पहले लोगों को माता का प्रकोप भी हो जाता था इस तरह के प्राकृतिक प्रकोप से बचने के लिए मां शीतला की पूजा की जाती है। अग्रवाल समाज में यह परंपरा पुराने समय से चली आ रही है, यह अभी भी बरकरार है। होली के बाद पडऩे वाले पहले सोमवार से लेकर बुधवार तक तीन दिनों तक विशेष पूजा इस समाज के द्वारा की जाती है। अग्रवाल समाज के संतोष भोपालपुरिया ने बताया कि पहले सोमवार को घरों में गर्म खाना बनता ही नहीं, चुल्हा तक नहीं जलता। सभी लोगों के लिए यह अनिवार्य होता है कि वे एक दिन पहले बनाए गए भोजन ही करेंगे। उन्होंने बताया कि पूजा तीन दिनों की होती है, तीसरे दिन बुधवार को महिलाएं फिर उसी तरह पूजा करतीं हैं, जैसी पूजा पहले सोमवार को की जाती है। जिला मुख्यालय में देवी मंदिर जांजगीर, गौशाला के पास मंदिर, रायगढिय़ा राइस मिल के पास, रामप्रसाद तालाब के पास के अलावा एक दो अन्य स्थानों पर भी पूजा की जाती है। बासी प्रसाद भोग लगाने के लिए एक दिन पहले बनाते हैं अग्रवाल समाज के सचिव संजय अग्रवाल ने बताया माता शीतला की पूजा में शुद्धता के साथ यह अनिवार्य होता है कि माता को लगने वाला प्रसाद भी बासी हो। इसका यह मतलब नहीं कि उसी दिन बना लें और ठंडा कर लें, बल्कि प्रसाद को भी एक दिन पहले रविवार को ही बनाना होता है। उन्होंने बताया के प्रसाद के लिए गुड़ का गुलगुला, गुड़ से बना हुआ मीठा भात, बाजरा की खिचड़ी, छाछ की राबड़ी, पूरी रविवार को ही बना लिया जाता है। पूजा के दौरान माता शीतला को गोबर से बना बिटकुला भी चढ़ाते हैं और हल्दी का चंदन लगाते हैं।