नईदिल्ली, ०३ जुलाई [एजेंसी]। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पैरोकारी के बाद से देश में चर्चा का केंद्र बने समान नागरिक संहिता को लागू करने में ईसाई समाज को कोई खास एतराज नहीं है। समुदाय के लोगों के अनुसार मोटे तौर पर क्रिश्चन कानून में कोई ऐसा भिन्न प्रविधान नहीं है, जो समान नागरिक संहिता में नहीं होगा। पश्चिम के ईसाई बहुल देशों में यह कानून पहले से है, जहां इसके जरिए वहां के नागरिकों के समानता, सम्मान व धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार निहित हैं। वैसे, ईसाई धर्मगुरुओं के अनुसार पवित्र ग्रंथ बाइबिल में विवाह को पवित्र माना गया है, इसलिए तलाक का प्रविधान नहीं है।देश में ईसाई समुदाय के लोगों की संख्या काफी कम तकरीबन तीन करोड़ ही है। इसके साथ ही एक वर्ग गुप्त ईसाई (क्रिप्टो क्रिश्चन) का है जो मतांतरित तो नहीं हैं, लेकिन उनकी धार्मिक मान्यता ईसाई है। देश में क्रिश्चन मैरिज एक्ट वर्ष 1872 का है। पीएम द्वारा समान नागरिक संहिता का जिक्र करने के बाद से माना जा रहा है कि जल्द ही केंद्र सरकार अपने प्रमुख तीन वादों में अंतिम बचे इस वादे को भी पूरा करेगी। आगरा स्थित प्रतिष्ठित सेंट जोंस कॉलेज के प्रधानाचार्य प्रो. एसपी सिंह के अनुसार उनके समाज में इस संहिता पर विमर्श तेज है। नफा-नुकसान टटोला जा रहा है। मोटे तौर पर जो बात सामने आ रही है वह यह कि इसे लेकर ईसाई समाज को कोई खास दिक्कत नहीं है। इससे विवाह व उत्तराधिकार जैसे किसी भी मामले पर ईसाई मान्यता प्रभावित नहीं होने वाली है। वैसे, मसीही समाज में तलाक का प्रविधान नहीं है, पर यह समस्या विकसित देशों के समक्ष भी आई तो वहां भी इसके प्रविधान किए गए हैं। हैवेनली फिस्ट चर्चेज के संस्थापक अध्यक्ष व केरल निवासी मैथ्यू कुरविला के अनुसार, बात चाहे आर्थोडॉक्स की हो कैथोलिक की, समान नागरिक संहिता के विरोध की वजह उनके पास नहीं है।कुछ तबके में इसको लेकर चिंता दिख भी रही है तो वह अज्ञानता के कारण है। इसलिए हम जैसे लोग इससे संबंधित जानकारी लोगों को दे रहे हैं। ताकि विधि आयोग को सही राय जाए। इसके साथ ही वह यह भी कहते हैं कि इस संहिता में अनाथ को लेकर परिभाषा में सुधार होना चाहिए, क्योंकि माता-पिता के निधन के बाद बहुत सारे बच्चों के परिवार के अन्य सदस्य होते हैं।इसी तरह गोद लेने की प्रक्रिया में निगरानी आवश्यक है, क्योंकि इसके जरिए भी मतांतरण के मामले बढ़ रहे हैं। केरल में ईसाई समुदाय की लड़कियों को लव जिहाद का शिकार बनाया जा रहा है। उनके अनुसार इस तरह के कानूनों व केंद्र सरकार की पहल से निश्चित ही इस तरह की स्थिति में बदलाव आएगा।चर्चेज ऑफ नॉर्थ इंडिया (सीएनआई) के दिल्ली डायसेस के पूर्व बिशप वारिस मसीही के अनुसार, तलाक के मामले सुलझाने के लिए ईसाई समुदाय के लोग भी कोर्ट जाते हैं। इसलिए इसपर विवाद खड़ा करना बेवजह है। चार्टर्ड एकाउंटेंट (सीए) एलेक्स इब्राहम स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि ईसाई समुदाय में अगर कोई विरोध का स्वर है भी तो वह केवल डर के कारण है कि उन्हें लगता है कि वह असुरक्षित हैं।