जांजगीर चाम्पा। लोकसभा क्षेत्र जांजगीर-चांपा के 8 विधानसभा क्षेत्र में से 5 विधानसभा चंद्रपुर, जैजैपुर, पामगढ़, बिलाईगढ़ और कसडोल सीधे तौर पर रेल सुविधा से वंचित हैं। आजादी के 76 साल बाद भी इन विधानसभा क्षेत्रों में रेल की सुविधा नहीं है। जबकि विधानसभा क्षेत्र अकलतरा, जांजगीर-चांपा और सक्ती रेल लाइन से सीधे जुड़े है। मुम्बई हावड़ा मार्ग इन तीनों शहरों के अलावा क्षेत्र के कई गांवों से होकर रेल लाइन गुजरी है। मगर जहां रेल लाइन का विस्तार हुआ है वहां भी सुविधाएं पर्याप्त नहीं है। जिले के बड़े स्टेशनों में भी न तो पर्याप्त ट्रेने रूकती न प्लेटफार्म में पर्याप्त सुविधा है और न ही समय पर गाडिय़ां आती-जाती है। वहीं रेलवे समपार फाटकों में वर्षों बाद ओव्हरब्रिज नहीं बनने से लोगों को आवाजाही में बड़ी परेशानी होती है। जिला मुख्यालय के रेलवे स्टेशन में यात्री सुविधाओं का अभाव है। एक ओर जहां प्लेटफार्मो में शेड की कमी है वहीं दूसरी ओर यात्रियों के बैठने के लिए बेन्च की कमी है। ऐसे में यात्रियों को खड़े होकर ट्रेन का इंतजार करना पड़ता है। कहने को तो यह स्टेशन माडल स्टेशन है मगर सुविधाएं अभी भी यहां पैसेंजर हाल्ट स्टेशन जैसी है। ऐसे में यात्रियों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हालांकि दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे द्वारा स्टेशन को मॉडल स्टेशन का दर्जा दिया जा चुका है परन्तु विभाग की उदासीनता का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। रेलवे को स्टेशन से हर माह लाखों रूपए की आय होती है मगर प्रशासन द्वारा यात्रियों की समस्याओं को नजरअंदाज किया जा रहा है स्टेशन में अब तक मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। यहां के सभी प्लेटफार्म में न तो लोगों को छाया देने के लिए पर्याप्त शेड लगे हैं और न ही यात्रियों के बैठने की कोई पर्याप्त व्यवस्था है। स्टेशन से यात्रा करने वाले यात्रियों को पर्याप्त शेड न होने के कारण धूप में खड़े होकर ट्रेन का इंतजार करने को मजबूर होना पड़ता है। हालाकि यात्रियों द्वारा शेड के अभाव में धूप से बचने के लिए प्लेटफार्म नं 1, 2 व 3 में कुछ पेड़ों के नीचे खड़े होकर अपनी ट्रेनों का इंतजार किया जाता है मगर प्लेटपुार्म नं 4 में केवल एक ही शेड लगा है जबकि चाम्पा, कोरबा की ओर जाने वाली प्राय: सभी ट्रेनों को इसी प्लेटफार्म में रोका जाता है। ऐसे में प्लेटफार्म नं 4 से यात्रा करने वाले यात्रियों को शेड व कुर्सियों के अभाव में अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। स्टेशन से यात्रा करने वाले यात्री धूप को सहन कर ट्रेन का इंतजार कर लेते हैं मगर वर्षा के दिनों में यात्रियों को मजबूरीवश भीगना पड़ता है। रेलवे द्वारा यहां कई सालों से स्टेशन का विकास करने की बात कही जा रही मगर स्टेशन के विकास की गति बहुत धीमी है। यही स्थिति अकलतरा और चांपा रेलवे स्टेशन की है। यहां भी पर्याप्त सुविधाएं नहीं है। इसके चलते यात्रियों को परेशानी होती है। प्लेटफार्म नं 1 मालगाडिय़ों के लिए सुरक्षित रेलवे स्टेशन जांजगीर-नैला में प्लेटफार्म नं 1 में अधिकांश मालगाड़ी गुजरती है। कई गाडिय़ां लंबे समय तक यहां खड़ी रहती है। ऐसे में यात्रियों को प्लेटफार्म नं 1 का कोई लाभ नहीं मिल पाता। उन्हें फुट ओवहरब्रिज पार कर दूसरे प्लेटफार्म में जाना पड़ता है। ऐसे में यात्रियों को परेशानी होती है। कई बार ऐन वक्त में एनाउंस कर यात्रियों का सूचित किया जाता है कि ट्रेन प्लेटपुार्म नं 2, 3 या 4 में आ रही हैं ऐसे में यात्रियों को सामान लेकर दौड़ भाग करना पड़ता है। फाटक पर करना पड़ता है इंतजार नैला स्टेशन से रेल फाटक नैला तक सड़क निर्माण की भी जरूरत है। बलौदा व पंतोरा जाने के लिए नैला फाटक पार करना पड़ता है। ट्रेनों के लगातार आने जाने से रेलवे फाटक देर तक बंद रहता है। इस रूट पर हर पंद्रह मिनट, आधे घंटे में मालगाडिय़ां गुजरती है। इसी तरह पैसेंजर ट्रेनों की भी संख्या बढ़ गई है। ऐसे में फाटक पर लोगों को देर तक इंतजार करना पड़ता है। फाटक बंद होते ही फाटक के दोनो ओर वाहनों की कतार लग जाती है। फाटक खुलते ही आगे निकलने के चक्कर में जाम की स्थिति बन जाती है। ऐसे में नैला फाटक पर भी ओवरब्रिज निर्माण की जरूरत महसूस होने लगी है। बलौदा क्षेत्र के लोगों ने शासन व रेल प्रशासन का ध्यान इस समस्या की ओर दिलाते हुए शीघ्र ओवरब्रिज निर्माण की मांग की है। मगर वर्षों बाद भी यह समस्या जस की तस है। ऐसे में क्षेत्रवासियों की परेशानी बढ़ गई है। खोखसा ओव्हरब्रिज का निर्माण भी दस साल में पूर्ण होने पर थोड़ी राहत जरूर मिली है। नहीं रूकती एक्सप्रेस ट्रेने जांजगीर-नैला रेलवे स्टेशन में जहां साउथ बिहार, गोड़वाना, हीराकुंड एक्सप्रेस का स्टापेज नहीं है, वहीं अकलतरा में कई एक्सप्रेस ट्रेनों के स्टापेज की मांग लंबे समय से कर रहे है। इसी तरह बाराद्वार में साउथ बिहार, गोड़वाना सहित अन्य लंबी दूरी के ट्रेनों का स्टापेज नहीं है। ऐसे में यात्रियों को सक्ती या चांपा आकर ट्रेन पकडऩा पड़ता है।