नईदिल्ली, ०२ जुलाई [एजेंसी]। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को मध्य प्रदेश के शहडोल में राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन का शुभारंभ किया। मोदी सरकार का लक्ष्य है कि साल 2047 तक भारत इस बीमारी से पूरी तरह मुक्त हो जाए।पीएम मोदी ने कहा कि हमारी सरकार ने आदिवासी भाई-बहनों के जीवन को सुरक्षित बनाने का संकल्प लिया है। भारत सरकार का लक्ष्य है कि हर साल सिकल सेल एनीमिया की गिरफ्त में आने वाले 2.5 लाख बच्चों और उनके परिवारजनों को इस बीमारी से छुटकारा दिलाया जाए। उन्होंने आगे कहा, सिकल सेक एनीमिया जैसी बीमारी बहुत कष्टदायी होती है। जिस बीमारी को खत्म करने के लिए मोदी सरकार ने कमर कस ली है वो आखिर कितनी गंभीर है और आखिर किन-किन राज्यों के लोग इस बीमारी के गिरफ्त में है। आइए इस बीमारी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों को जरा जान लें।सिकल सेल एनीमिया एक जेनेटिक बीमारी है। ये बीमारी माता-पिता से बच्चों तक पहुंचती है। ये एक तरह का ब्लड डिसऑर्डर है, जिसमें रेल ब्लड सेल्स का आकार बदल जाता है। इस बीमारी की वजह से शरीर में रेल ब्लड सेल्स सही ढंग से काम नहीं कर पाती, जिसकी वजह से शरीर में खून की कमी हो जाती है। जानकारी के अनुसार, बीमारी की वजह से खून को नसों में ब्लॉकेज हो जाता है, जिसकी वजह से शरीर में खून बनना बंद हो जाता है और शरीर के कई अंगों पर बुरा असर पड़ता है।इस बीमारी की चपेट में देश के 17 राज्यों के लगभग 7 करोड़ से आदिवासी लोग हैं। ये बीमारी मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में फैली हुई है। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के आदिवासी समाज के लोग इस बीमारी से काफी परेशान हैं।इस मिशन का लक्ष्य है कि साल 2047 तक देश को इस बीमारी से पूरी तरह मुक्त किया जाए। केंद्र सरकार ने इसी साल आम बजट में सिकल सेल मिशन की घोषणा की थी। इस मिशन के जरिए आदिवासी समाज के 7 करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग करके उन्हें सिकल सेल कार्ड दिया जाएगा। स्क्रीनिंग के जरिए लोगों को इस घातक बीमारी से बचाया जा सकता है। डॉक्टरों का मानना है कि प्रेंग्नेंसी के 10 सप्ताह के अंदर सिकल सेच और थैलसीमिया की जांच कराने से बच्चो को इस बीमारी से बचाया जा सकता है।