कोरबा। सरकारी स्कूलों की व्यवस्था को कैसे बेहतर किया जाए, इसे लेकर भारत सरकार न केवल चिंतित है बल्कि काम भी कर रही है। प्रधानमंत्री वित्तीय प्रबंधन योजना (पीएफएमएस) इसी उद्देश्य से शुरू की गई है। नाम के लिए स्कूलों के प्रमुख के खाते में धन राशि प्राप्त हो रही है लेकिन अड़चनों और धड़ेबाजी के चक्कर में वे चाहकर भी राशि का आहरण खुद होकर नहीं कर पा रहे हैं। पूरी व्यवस्था में बीआरसी और सीआरसी की बड़ी मौज है। कोरबा जिले के पांच विकासखंडों में एक जैसे हालात पीएफएमएस को लेकर बने हुए हैं। खबर में बताया गया कि स्कूलों में सामान्य सुधार के साथ-साथ प्रशिक्षण और आपातकालीन कामकाज के लिए भारत सरकार ने इस योजना को बनाया है और इसके अंतर्गत स्कूलों को श्रेणीकृत करते हुए वहां राशि ट्रांसफर करने की व्यवस्था की है। मामले में सबकुछ पारदर्शी रहे, इस इरादे से संस्था प्रमुखों के खाते में राशि भेजी जा रही है। लेकिन तकनीकी जानकारी न होने के चक्कर में संस्था प्रमुख अपने स्तर पर इस राशि का आहरण नहीं कर पा रहे हैं। इसके चलते पूरा दारोमदार बीआरसी और सीआरसी के उपर आ गया है और वे मनमाने ढंग से स्कूलों के उपयोग के लिए आने वाली राशि में जमकर कमीशन मार रहे हैं और उसके बाद धनराशि संस्थाओं का दे रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि अधिकतम 15 प्रतिशत तक की वसूली इस मामले में प्रधान पाठकों से की जा रही है। नियमों के अंतर्गत स्कूलों में जो भी काम कराए जाने हैं, उसके लिए सीधे तौर पर जीएसटी पंजीयन रखने वाली दुकानों से खरीदी की जानी है और उसका बिल लगाना है। इसके उल्टे अनेक स्थानों पर बिना कोई काम कराए गिने-चुने कारोबारियों से कमीशन आधार पर बिल प्राप्त करने के साथ गोलमाल किया जा रहा है। इस तरह का तोड़ नीचे स्तर पर काम करने वाले तंत्र ने खुद निकाला है और उसे साझा किया है। ऐसे में सरकार की मंशा पर पलीता लग रहा है और विद्यालयों में पीएफएमएस से ढंग के काम भी नहीं हो पा रहे हैं। कहा जा रहा है कि प्रशासन इसकी जांच करे तो बोगस खरीदी के मामले सार्वजनिक हो सकेंगे। वहीं यह भी मांग की जा रही है कि सरकार ने जिस उद्देश्य से योजना को धरातल पर उतारा है, उसके सभी पहलुओं को सरलीकृत करने की जरूरत है।