
जम्मू, १३ अगस्त । 19 जनवरी, 1991 का दिन था, श्रीनगर के लाल चौक में पैलेडियम सिनेमा परिसर में दोपहर के समय दो लोग आए और मेरे पति बलदेव राज दत्ता को टीवी ठीक करने के लिए कहकर अपने साथ ले गए। इनमें एक नूरा था, जो वहीं पास में रहता था। रास्ते में मेरे पति की आंखों पर पट्टी बांध दी गई। जब वह घर नहीं लौटे तो हम पुलिस के पास गए, लेकिन किसी ने हमारी नहीं सुनी और एफआइआर तक नहीं लिखी गई।मैं अपने तीन छोटे-छोटे बच्चों के साथ भटकती रही। सुबह पता चला कि हब्बाकदल चदपुरा में मेरे पति की हत्या कर दी गई है। पुलिस ने हमें पति का संस्कार भी नहीं करने दिया। मैं अपने बच्चों को लेकर बहुत डरी हुई थी। तब कश्मीर में माहौल बहुत खराब था, इसलिए बच्चों को लेकर श्रीनगर से जम्मू के मुठी शरणार्थी कालोनी कैंप में आ गई।बाद में समाचार पत्रों में पढ़ा कि मेरे पति की हत्या की जिम्मेदारी जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) ने ली है। जम्मू के मुठी में शरणार्थी कालोनी में रहने वालीं 65 वर्षीय ऊषा रानी दत्ता भी उन आतंक पीडि़तों में से एक हैं,जो चाहते हैं कि कश्मीरी हिंदुओं के हत्यारों को कड़ी सजा मिले और पूरे षड्यंत्र का पता चले।कश्मीर में 1989-95 तक हुई कश्मीरी हिंदुओं की हत्या की फिर से जांच करवाने के प्रदेश सरकार के फैसले से अपने को खोने वाले परिवारों में न्याय की आंस बंधी है। ऊषा रानी ने कश्मीर के पुराने दिनों को याद करते हुए बताया कि हमारा एक खुशहाल परिवार था। हम श्रीगनर के एक्सचेंज रोड में रहते थे, मगर आतंकियों ने हमारी जिंदगी को तहस नहस कर दिया।आतंकवाद के चलते पैलेडियम सिनेमा पहले ही बंद हो चुका था। मेरे पति वहां हेड आपरेटर (रील चलाने वाले) थे। थिएटर मालिक ने हमपर दया कर वहीं परिसर में थोड़ी सी जगह उपलब्ध करवा दी, ताकि टीवी-रेडियो ठीक करके हम रोजी-रोटी चला सकें। ऊषा ने बताया कि जिन लोगों के साथ मेरा पति टीवी ठीक करने के लिए गए थे, उनमें एक नूरा था। वह पैलेडियम सिनेमा के पास ही काम करता था। उसका हमारे घर भी आना-जाना था, लेकिन मुझे पहले ही लगता था कि वह गद्दार है।जिस दिन मेरे पति का अपहरण हुआ उसी दिन शाम को नूरा हमारे घर बच्चों के लिए पकौड़े लेकर आया था, ताकि हमदर्द होने का दिखावा कर सके। उसने हमें कहा कि बलदेव जेकेएलएफ के कुछ लोगों के साथ कहीं टीवी ठीक करने गया है, सुबह तक लौट आएगा। बाद में मेरे धर्म के भाई सुरेंद्र कुमार ने बताया कि जो दो लोग बलदेव को ले गए थे, उसमें नूरा भी था। नूरा ही गद्दार था और आतंकियों के साथ जा मिला था। सरकार उसे पकड़कर फांसी की सजा दे। ऊषा ने कहा हम जिंदगी भर दौड़ते ही रहे। पहले गुलाम जम्मू-कश्मीर से विस्थापित हुए और कश्मीर में आकर बसे। मगर वहां आतंकवाद ने हमें रहने नहीं दिया। पति को खोया और आज मुठी के शरणार्थी कालोनी में जीवन काट रही हूं। बड़ी बेटी नीता एक हाथ से दिव्यांग है, एक बेटी सुनीता की शादी हो चुकी है और बेटा पवन कुमार प्राइवेट नौकरी करता है।