कोरिया बैकुंठपुर। अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय है यह विशाल ब्रह्मांड, जिसमें अनगिनत तारामंडल अपने-अपने ग्रहों के साथ विचरण करते रहते हैं. सबका एक निश्चित परिपथ है इस परिपथ से भटकने वाला तारा अपना अस्तित्व समाप्त कर इसी ब्रह्मांड में विलीन हो जाता है या कोई नया नाम ग्रहण कर लेता है. इसी ब्रह्मांड में हमारा सूर्य और सौरमंडल भी है जिसमें मनुष्य सहित कई जीव जंतु की उत्पत्ति होती हैं, लेकिन ब्रह्म और ब्रह्मांड का नियम हम पर भी लागू होता है कि अपने परिपथ को न छोड़ें अन्यथा हम भी उसी विशाल तारे की तरह नष्ट हो जाएंगे. आध्यात्मिक संत महात्माओं के ज्ञान के अनुसार वर्तमान परिवेश में जब हम भौतिकवादी युग में धन यश कमाने में एक दूसरे को पीछे धकेलने की प्रतिस्पर्धा में तल्लीन दिखाई पड़ते हैं जो हमारे वास्तविक जीवन का उद्देश्य नहीं है. जीवन को जीने के उद्देश्य परक ज्ञान को प्राप्त करने की विधा हमें अध्यात्म में मिलती है. अध्यात्म जीने की एक ऐसी विधा है जिसमें जियो और जीने दो की शक्ति कार्य करती है. आपके व्यवहार में करुणा और सत्य दोनों होना चाहिए. ईर्ष्या प्रलोभन से दूर स्वयं के साथ दूसरों की प्रगति में खुशी महसूस करना ही अध्यात्म की प्रथम सीढ़ी है. अध्यात्म ही जीवन में प्रेम शांति खुशी और विवेक की शक्ति प्रदान करता है. हम सर्वव्यापी इस परमात्मा के अंश है जो ब्रह्म के अंदर समाहित है जिसका कोई स्पष्ट रूप नहीं है किंतु वह इस ब्रह्मांड और प्रकृति का नियंता भी है उत्तरोत्तर विकास के आगले चरण में हमें ज्ञान होता है कि हम देह नहीं मन नहीं बल्कि आत्मा है यह उसी परमात्मा का अंश है जो ब्रम्ह और ब्रम्हांड का नियंता है. आध्यात्मिक ज्ञान हमें पतन की ओर जाने से रोकता है. आज के भौतिकवादी युग में मनुष्य के अंदर जो अंधकार उत्पन्न हो गया है उसे अध्यात्म के प्रकाश से ही दूर किया जा सकता है . मंदिरों एवं गुरु शक्ति के समीप पहुंचने का प्रयास भौतिकवादी जीवन से आध्यात्मिक जीवन में जाने का प्रथम चरण है. जब हम अपने भौतिक सुखों से विरक्त होने लगते हैं एवं जब आर्थिक संसार की ऊंचाईयाँ भी हमे शांति नहीं देती तब अध्यात्म के केंद्र, शक्ति स्थल मंदिर हमें एक शांति प्रदान करते हैं. दूसरी ओर सामान्य जन की भाषा में जब इसी पृथ्वी के जीव मनुष्य का एक वर्ग असफलता एवं निराशा के दौर से गुजरता है तब इन्हीं आध्यात्मिक शक्ति स्थल मंदिर में स्थापित मूर्ति को ब्रह्मांड की चेतना का अंश मानते हुए हम उनकी शरण में चले जाते हैं. यही शक्ति केंद्र हमें स्वयं की आत्मा से परिचित कराते हैं आध्यात्मिक शांति का हम अनुभव प्राप्त करते हैं. मंदिर और शक्ति केंद्र हमें नकारात्मकता की बजाय सकारात्मक प्रयास के लिए प्रेरित करते हैं . यही सकारात्मक भाव हमारे जीवन की दिशा तय करते हैं इसी दिशा परिवर्तन को हम ईश्वर, महामाया या शक्ति केंद्र का आशीर्वाद मानते हैं जिसके बल पर हमारे जीवन की सफलता की आगामी यात्रा तय होती है. शक्ति स्थल की चर्चा में आईए आज चलते हैं छत्तीसगढ़ के 32 में जिले मनेन्द्रगढ़- चिरमिरी – भरतपुर के आखिरी छोर में बसे खडगवां विकासखंड के चनवारीडांड़ ग्राम में स्थित महामाया देवी के मंदिर की ओर, जो समय के अनुसार आध्यात्मिक आस्था का समंदर बनता जा रहा है. आदिवासी जनजाति के हजारों परिवारों से परिपूर्ण यह अंचल अपनी आदिवासी संस्कृति के गौरवपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेजों से परिपूर्ण है. आसपास के गांव में आदिवासी राजाओं के कई किस्से आज भी पुरखों की जुबानी सुनी जा सकती है. राजगोंड़ परिवार के लोग आज भी उनके वंशज कहलाने पर गर्व का अनुभव करते हैं. इस अंचल के धवलपुर, खडगवां, रानी कुंडी जैसे कई पर्यटन स्थल है जो इन राजाओं की कहानियों से जुड़े हुए हैं और कई किस्से आज किवदंतियों के रूप में प्रचलित है. जो आदिवासी गौरव की किस्सागोई के रूप में लोगों के द्वारा आज भी याद की जाती है. गोंड राजाओं के राज्यों के कई किस्सों के बीच खडग़वां ब्लॉक जो सैकड़ों वर्ष पूर्व से आदिवासी जमीदारों की निवास स्थल रही है. नए जिले मने- चिर- भरतपुर जिले की सीमाएं इसी खडग़वां विकास खंड से बिलासपुर और कोरबा जिले तक फैली हुई है. यहां के चनवारी डांड ग्राम में गोंड राजाओं के समय काल से ही जमींदारी चली आ रही है. यहां के जमीदार स्वर्गीय उदित नारायण सिंह का राज निवास यहां खडगवां में था जहां पर उन्होंने अपने क्षेत्र की सुख समृद्धि के लिए महामाया देवी के पूजा स्थल की स्थापना की थी. जो उनकी कुलदेवी के रूप में मान्यता प्राप्त है. लेकिन समय के बदलाव के साथ राजाओं के राज्य और जमीदारों की जमींदारियाँ समाप्त हो गई. परिवार बिखर गए. तब ऐसे मंदिरों के शक्ति स्थल धीरे-धीरे आम जनमानस की आस्थाओं से जुड़ते चले गए. अपनी आध्यात्मिक आस्था के साथ जो भी इस महामाया मंदिर तक शांति के लिए या अपनी मनोकामनाओं के लिए पहुंचा इस ग्रामीण परिवेश में मां जगदंबा ने उसके भीतरी शक्ति को जागृत करने का अवसर दिया और यही आशीर्वाद के रूप में हमारे द्वारा किए गए कार्यों के क्रियान्वयन एवं सफलता का कारण बनी . इसी आशीर्वाद एवं पण्य प्रताप की चर्चा से इस महामाया मंदिर की कीर्ति आसपास के गांव शहर और पूरे छत्तीसगढ़ में फैल गई. लोगों का आध्यात्मिक आस्था के साथ खडगवां के चनवारी डांड में स्थित इस महामाया मंदिर में लोगो का आवागमन बढ़ते बढ़ते यह स्थल आज आस्था का एक विशाल समंदर बन चुका है. चनवारीडांड़ गांव में इस मंदिर की स्थापना की भी अपनी एक कहानी है. खडग़वां के पुराने निवासी राजेश्वर श्रीवास्तव के पुत्र अनिल श्रीवास्तव एवं महामाया मंदिर कमेटी के सचिव आर बी श्रीवास्तव ( राम बाबू श्रीवास्तव) से प्राप्त जानकारी के अनुसार पूर्वजों एवं किवदंतियों के अनुसार यह महामाया देवी की मूर्ति रतनपुर महामाया स्थल से पूर्व विधायक श्री चंद्र प्रताप सिंह के परदादा स्व. र्देवनारायण सिंह के पुत्र स्वर्गीय उदित नारायण सिंह द्वारा लगभग सौ साल पहले लाई गई थी. उस समय आवागमन हेतु घोड़े, बैलगाड़ी भैसागाड़ी जैसे साधन ही उपलब्ध थे. अत: यह मूर्ति भी बैलगाड़ी मैं लादकर खडग़वां में स्थापित करने के विचार से लाई गई, लेकिन रतनपुर से आते समय उन दिनों कच्चे रास्ते पर चलती बैलगाड़ी उबड़ खाबड़ रास्ते से गुजरती हुई चनवारी डांड के इस स्थान तक पहुंच कर कीचड़ भरे रास्ते में फँस गई. तालाब का किनारा होने के कारण यह रास्ता कीचड़ भरा कच्चा रास्ता था जिसमें मूर्ति से लदी यह बैलगाड़ी ज्यादा धँस गई. जिसे ग्रामीणों के प्रयास से निकालने की कोशिश की गई लेकिन बैलगाड़ी को ना तो बैल खींच पाए और ना ही आदमी उसे निकाल पाए, ऐसी स्थिति में मूर्ति को नीचे उतार कर कर तालाब के एक ऊंचे स्थान पर रख दिया गया. जिसे दूसरे दिन फिर से उठाकर खडग़वां ले जाना तय किया गया, किंतु रात को जमीदार स्वर्गीय उदित नारायण जी को देवी जी ने उनके स्वप्न में प्रकट होकर कहा कि मुझे इस स्थान पर ही स्थापित कर दो यह एक सिद्ध स्थल है . कहीं और ले जाने का प्रयास मत करो. देवी की यह मनसा को आशीर्वाद और आदेश मानते हुए उदित नारायण जी ने मां महामाया को आम के पेड़ के नीचे स्थापित कर दिया जो आज भी अपने स्थान पर स्थापित है.