
मकर संक्रान्ति (मकर संक्रांति) भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है। मकर संक्रांति (संक्रान्ति) पूरे भारत और नेपाल में भिन्न रूपों में मनाया जाता है। पौष मास में जिस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है उस दिन इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में जाना जाता हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। बिहार के कुछ जिलों में यह पर्व तिला संक्रांत नाम से भी प्रसिद्ध है। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहते हैं। 14 जनवरी के बाद से सूर्य उत्तर दिशा की ओर अग्रसर (जाता हुआ) होता है। इसी कारण इस पर्व को उतरायण (सूर्य उत्तर की ओर) भी कहते है। वैज्ञानिक तौर पर इसका मुख्य कारण पृथ्वी का निरंतर 6 महीनों के समय अवधि के उपरांत उत्तर से दक्षिण की ओर वलन कर लेना होता है। और यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।
मकर संक्रांति पुण्य काल मुहूर्त
इस वर्ष मकर संक्रांति पर पुण्य काल मुहूर्त 14 जनवरी 2025 को सुबह 08 बजकर 40 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। पुण्य काल के मुहूर्त में गंगा स्नान और दान करने का विशेष महत्व होता है।
महापुण्य काल मुहूर्त
मकर संक्रांति पर महापुण्य काल का मुहूर्त सुबह 08 बजकर 40 मिनट से 09 बजकर 04 मिनट तक रहेगा।
मकर संक्रांति 2025 में दान और स्नान का मुहूर्त
मकर संक्रांति पर स्नान और दान करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन बिना गंगा स्नान और दान के मकर संक्रांति का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। मकर संक्रांति पर सुबह-सुबह स्नान करने के विशेष महत्व होता है। 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर गंगा स्नान के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 09 बजकर 03 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक रहेगा। पवित्र नदी में मकर संक्रांति के दिन स्नान करने के बाद सूर्यदेव को जल अर्पित करने और तिल का दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
मकर संक्रांति पूजा विधि
मकर संक्रांति का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस त्योहार के देशभर के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। मकर संक्रांति पर सूर्यदेव की विधि-विधान के साथ पूजा करने का महत्व होता है। मकर संक्रांति के दिन सुबह जल्दी उठकर घर के साफ-सफाई करने के बाद घर के पास किसी पवित्र नदी में स्नान करने जाएं और वहां पर स्नान करने के बाद सूर्य देव अघ्र्य दें। फिर सूर्यदेव से जुड़े मंत्रों का जाप करें और दान-दक्षिणा करें।
मकर संक्रांति पर प्रयागराज के त्रिवेणी में स्नान का महत्व
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश काल के समय जब सभी देवों के दिन का शुभारंभ होता है तो तीनों लोकों में प्रतिष्ठित गंगा, यमुना और सरस्वती के पावन संगमतट त्रिवेणी पर साठ हजार तीर्थ और साठ करोड़ नदियाँ, सभी देवी-देवता, यक्ष, गन्धर्व, नाग, किन्नर आदि तीर्थराज प्रयाग में एकत्रित होकर गंगा-यमुना-सरस्वती के पावन संगम तट पर स्नान, जप-तप और दान-पुण्य कर अपना जीवन धन्य करते हैं। तभी इसे तीर्थों का कुंभ भी कहा जाता है।
मकर संक्रांति की कथा
मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव के घर जाते हैं। कहा जाता है कि इस दिन सूर्य की काले तिल के साथ उपासना करने से व्यक्ति को बहुत लाभ मिलता है। इसके अलावा मकर संक्रांति के मौके पर सूर्यदेव और शनि की कथा पढ़ी जाए तो शनिदोष से काफी हद तक राहत मिलती है। तो आइए जानते है मकर संक्रांति की कथा।
इस दिन जप-तप व दान करने का विशेष महत्व है। इस दिन किए गए दान का दोगुना फल मिलता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्य शनि देव के घर आते हैं। इस दिन सूर्य शनि की राशि मकर में प्रवेश करेंगे। आपको बता दें कि पहले शनिदेव की राशि कुंभ थी। लेकिन, जब सूर्य देव शनिदेव से प्रसन्न हुए तो उन्होंने उन्हें एक और राशि यानी मकर राशि प्रदान कर दी। मकर संक्रंति के दिन सूर्यदेव और शनि की कथा पढऩे से आप शनि दोष से काफी हद तक राहत पा सकते हैं।
हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक मकर संक्रांति का पर्व भी है। इस दिन भगवान सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति मनाई जाती है।
यह दिन पूर्ण रूप से भगवान सूर्य को समर्पित है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान-पुण्य और खिचड़ी खाने और दान करने की परंपरा है। इसके अलावा इस शुभ अवसर पर तिल के लड्डू बनाए जाते हैं, जो इस इस दिन का मुख्य प्रसाद भी माना जाता है,