कोरबा/गेवरा। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड गेवरा क्षेत्र में ऐसा पहली बार हुआ जब निर्माण के देवता विश्वकर्मा के प्राकट्य दिवस पर कोल माइंस के अंदरूनी हिस्से के बजाय गेवरा स्टेडियम में सार्वजनिक कार्यक्रम करते हुए पूजा की गई। जबकि दीपका क्षेत्र की खदान में पूजा पाठ जैसा कार्यक्रम पहले की तरह हुआ।
कोयलांचल से जुड़े कर्मचारी बताते हैं कि कई दशक से खदान के भीतर ही विश्वकर्मा पूजा करने की पंरपरा बनी हुई थी और इसे आज के दिन किया जाता रहा। ऐसा पहली बार प्रबंधन की ओर से किया गया जब 52 मिलियन टन वार्षिक कोयला खनन वाली गेवरा खदान के भीतर पूजा करने से परहेज किया गया और कई किलोमीटर दूर गेवरा स्टेडियम में इसकी औपचारिकता निभाई गई। अधिकारियों के साथ ट्रेड यूनियन के कुछ पदाधिकारी और कर्मी यहां उपस्थित हुए जिन्होंने प्रतिमा की पूजा की। जानकारों ने बताया कि प्रबंधन के द्वारा खदान के भीतर विश्वकर्मा पूजा नहीं करने से संबंधित निर्णय के पीछे यह तर्क दिया गया कि अगर ऐसा होता है तो कई घंटों के लिए कामकाज रोकना होगा। ऐसे में न केवल मशीनरी ठप रहेगी बल्कि कोयला खनन जैसी गतिविधियां भी नहीं हो सकेंगी। एसईसीएल के साथ-साथ ब्रम्हांड की सबसे बड़ी खदान गेवरा को मान लिया गया है।
इस स्थिति में कुछ घंटों के लिए कोयला उत्पादन नहीं करने का मतलब करोड़ों का नुकसान करना होगा। ऐसी स्थिति में कुल मिलाकर कंपनी को अआर्थिक चपत लग सकती है। इसे देखते हुए इस बार से यह परिवर्तन किया गया। हैरानी जताई गई है कि नए तरह का नियम लागू करने को लेकर जेसीसी को भरोसे में नहीं लिया गया और न ही इस संबंध में चर्चा की गई। इसके ठीक उल्टे एसईसीएल की एक और मेगा प्रोजेक्ट दीपका में खदान के भीतर विश्वकर्मा प्राकट्य दिवस पर पूजा अर्चना संपन्न हुई।