
वाराणसी, १५ मई ।
चुनावों में प्रस्तावक की भूमिका अहम होती है। ये वह लोग होते हैं जो किसी उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव रखते हैं। अमूमन, नामांकन के लिए किसी राष्ट्रीय पार्टी के लिए दो और निर्दल के लिए 10 प्रस्तावकों की जरूरत होती है। कई बार तो प्रस्तावक चुनाव का रुख बदल देते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भोलेनाथ की नगरी काशी से तीसरी बार ‘चुनावी रणघोष’ किया है। 2014 और 2019 की तरह इस लोकसभा चुनाव में भी उनके चार ही प्रस्तावक रहे। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री ने प्रस्तावकों के बहाने जातीय समीकरण को साधने की कोशिश की है। प्रस्तावकों में एक ब्राह्मण, दो पिछड़ा वर्ग और एक अनुसूचित जाति वर्ग से हैं। बनारस में ब्राह्मण मतदाता सबसे अधिक हैं।
कैंट विधानसभा क्षेत्र में गंगा के किनारे का क्षेत्र ब्राह्मण बहुल है। दूसरे स्थान पर पिछड़ा वर्ग हैं, इसमें बिंद, निषाद, पटेल, राजभर और मौर्य समेत कई जातियां शामिल हैं। सेवापुरी और रोहनिया में पटेल समाज की अधिकता है। उत्तरी, दक्षिणी और कैंट में मुसलमानों की संख्या ठीक है, लेकिन 20 प्रतिशत अनुसूचित समाज के वोटर हमेशा ही निर्णायक रहे हैं। पीएम मोदी के प्रस्तावक ज्योतिषाचार्य गणेश्वर शास्त्री ने अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त निकाला था। ये ब्राह्मण समाज से ही हैं, काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण का शुभ मुहूर्त भी इन्होंने ही निकाला था। वह जगतगुरु रामानंदाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं। वह दक्षिण भारत से काशी आए और रामघाट क्षेत्र में गंगा किनारे कई पीढ़ी से रहते हैं। बैजनाथ पटेल पिछड़ा वर्ग समाज से आते हैं और जनसंघ के पुराने कार्यकर्ता रहे। लालचंद कुशवाहा भी ओबीसी समुदाय से हैं, सेवापुरी गांव में रहते हैं। रोहनिया विधानसभा में करीब दो लाख से ज्यादा वोटर इन्हीं के समाज से हैं, जबकि संजय सोनकर अनुसूचित जाति से हैं। उनकी भी समाज में गहरी पैठ है। प्रधानमंत्री के प्रस्तावकों पर पखवारे भर से चर्चा चल रही थी। अंतिम समय तक असमंजस की स्थिति बनी रही। सबसे पहले 50 लोगों की सूची तैयार की गई थी, लेकिन बाद में इनमें से 26 नाम अलग किए गए और समग्र सूची प्रधानमंत्री को भेजी गई। इन नामों पर भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री सुनील बंसल के साथ गृह मंत्री अमित शाह की लंबी मंत्रणा हुई और अंतिम चारों नाम तय किए गए।



















