
कोरबा। जल-जंगल-जमीन से लेकर कई तरह की योजनाओं और घोषणाओं के बीच लोकसभा चुनाव का तीसरा चरण संपन्न हो गया जिसमें छत्तीसगढ़ की बाकी बची 7 सीटें निपट गई। इन सबके बीच कोलफील्ड्स से संबंधित मुद्दों पर न तो बात हुई और न ही यह बताने की कोशिश की गई कि पढ़-लिखकर यहां-वहां संघर्ष कर रहे युवाओं को कोयला खदानों में रोजगार देने के लिए क्या नीति है। यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि कोल इंडिया की सहयोगी कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड में भर्ती प्रक्रिया बंद है। कोरबा लोकसभा क्षेत्र का बड़ा हिस्सा कोयला खदानों को समाहित किये हुए है। कोरबा, एमसीबी और बैकुंठपुर जिले इसी में शामिल हैं जहां एसईसीएल की ज्यादा खदानें संचालित हैं। काफी समय से खदानों में नई भर्तियां नहीं होने को लेकर नाराजगी दिखाई देती रही है। कोल इंडिया के बड़े अधिकारियों की ओर से परियोजना विस्तार के साथ-साथ कर्मचारी कल्याण की बात जरूर कही गई लेकिन अन्य मसलों को हासिए पर छोड़ दिया गया। चुनाव के दौरान किसी भी राजनीतिक दल की ओर से एसईसीएल में नई भर्ती करने और बेरोजगारी स्तर को कम करने पर न तो चर्चा की गई और न ही बताया गया कि चुनाव जीतने के बाद इस दिशा में क्या कुछ हो सकेगा। याद रहे कोरबा सहित अन्य संबंधित जिलों में एसईसीएल के द्वारा खदान विस्तार समेत नए प्रस्तावों के सिलसिले में जमीन अर्जन से प्रभावित भूविस्थापितों को मुआवजा, रोजगार देने के मामले अटके हुए हैं। इसके लिए समयबद्ध कार्यक्रम नहीं बनाने से बार-बार टकराव के हालात निर्मित होते रहे हैं। बेरोजगारों व भूविस्थापितों के मसले कैसे हल होंगे इसके लिए प्रभावी कार्ययोजना कब बनेगी यह बड़ा मुद्दा है। एसईसीएल ने आईटीआई प्रशिक्षुओं को अप्रेंटिसशिप कराने का काम तो जरूर जारी रखा है लेकिन इसके बाद रोजगार की दिशा में कोई विकल्प ही नहीं है।
आउटसोर्सिंग से चल रहा काम
कई प्रकार की चुनौतियों को लेकर बार-बार बात जरूर की जा रही है लेकिन सच्चाई यही है कि सीआईएल की दूसरी कंपनियों सहित एसईसीएल में बहुत सारे काम आउट सोर्सिंग पर दे दिए गए हैं। इसमें सीमित लोगों को नियोजित किया गया है, वहीं इसके जरिए कंपनियां मालामाल हो रही है।






















