कोरबा। राज्यव्यापी आह्वान पर अमल करते हुए कोरबा जिले में निजी स्कूल संगठन आज हड़ताल पर रहा। वर्ष 2022-23 में शिक्षा के अधिकार की बकाया राशि और 15 साल बीतने पर भी निर्धारित राशि में बढ़ोत्तरी नहीं करने को लेकर संचालक नाराज हैं। सीजी बोर्ड से जुड़े प्रायमरी से लेकर हायर सेकेंडरी स्कूलों में आज यह हड़ताल रही।
जिले में 250 से ज्यादा निजी स्कूल आज इस हड़ताल में शामिल रहे। पहले ही संगठन के द्वारा इस बारे में घोषणा कर दी गई थी और सरकार को अवगत करा दिया गया था। कोरबा नगर सहित उपनगरीय क्षेत्रों और जिले में पोला के सामान्य अवकाश के दिन जहां सीबीएसई माध्यम वाले स्कूल संचालित रहे वहीं निजी स्कूलों में सन्नाटा पसरा रहा। आज के प्रदर्शन के बारे में जिन विद्यार्थियों ने गंभीरता से सूचना को ग्रहण किया वे विद्यालय नहीं पहुंचे जबकि कहीं-कहीं विद्यार्थियों को विद्यालय पहुंचने के बाद अपने घर लौटना पड़ा। खबर के मुताबिक 8 मांगों को लेकर निजी स्कूल संचालक संघ के द्वारा राज्यव्यापी हड़ताल की गई जो कोरबा जिले में प्रभावी रही। शिक्षा विभाग से मान्यता प्राप्त ऐसे सभी स्कूल इस हड़ताल में शामिल रहे। इस दौरान संगठन के पदाधिकारियों ने शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत वर्ष 2022-23 के लगभग 3 करोड़ रुपए का भुगतान किये जाने और योजना को लागू हुए 15 वर्ष बीतने पर भी निर्धारित शुल्क 7 हजार रुपए दिए जाने पर असंतोष जताया। कहा जा रहा है कि इतने वर्षों में महंगाई का स्तर कहां से कहां पहुंच गया लेकिन अनुदान राशि में कुछ बदलाव नहीं किया गया। सरकार इस मामले में उदासीन बनी हुई है।
सरकारी योजनाओं के लाभ से हमारे शिक्षक वंचित क्यों : अक्षय
निजी स्कूल संचालक संघ ने अपने प्रदर्शन के अंतर्गत कुल आठ मुद्दों पर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया और नाराजगी जताई। कोरबा जिले के अध्यक्ष अक्षय दुबे ने सवाल खड़ा किया कि जब आरटीई के साथ-साथ सरकार की अन्य योजनाओं के माध्यम से विद्यार्थियों को लाभान्वित करने सहित दूसरे कार्य निजी स्कूल के शिक्षक कर रहे हैं तो वे बोनस अंक व अन्य सुविधाओं से वंचित क्यों हैं। किसी भी सरकारी वैकेंसी के लिए हमारे शिक्षकों को वरीयता क्यों नहीं दी जा रही है। केवल सरकारी विद्यालयों के विद्यार्थियों तक ही सरस्वती साइकिल योजना का केंद्रीकरण क्यों किया गया है। नीतिगत रूप से शिक्षा क्षेत्र को प्रभावी बनाने के लिए निजी स्कूल के शिक्षक और संचालक अपनी उतनी भूमिका निभा रहे हैं जितनी की सरकारी स्कूल निभाते हैं। ऐसी स्थिति में आखिर निजी स्कूलों के साथ भेदभाव करना किस तरह से तर्कसंगत हो सकता है।