नईदिल्ली, २१ दिसम्बर ।
सीमा विवाद को स्थाई तौर पर सुलझाने को लेकर भारत और चीन के बीच विशेष प्रतिनिधि (एसआर) स्तर की वार्ता के बाद अब कारोबार से जुड़े मुद्दे पर भी जल्द ही दोनों देशों के बीच बैठक हो सकती है। चीन भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर देश है और दोनों देशों के बीच कारोबार से जुड़े कई मुद्दे भी हैं, इसके बावजूद पिछले पांच वर्षों से इनके वाणिज्य मंत्रियों के बीच कोई वार्ता नहीं हुई है। जुलाई, 2023 में जी-20 सम्मेलन के दौरान अहमदाबाद में भारत व चीन के वित्त मंत्रियों की एक बैठक जरूर हुई थी लेकिन उसके बाद तकरीबन डेढ़ वर्ष का समय बीत चुका है। अक्टूबर, 2024 में पीएम नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच हुई मुलाकात में ना सिर्फ पूर्वी लद्दाख स्थित एलएसी पर साढ़े चार वर्षों से जारी सीमा विवाद का निपटारा हुआ है बल्कि सहयोग के दूसरे क्षेत्रों में भी मुलाकात का रास्ता खुला है। भारत और चीन के रिश्तों में तनाव से दोनों देशों के कारोबारी जगत को भी बहुत ज्यादा परेशानी हो रही है। चीन के सहयोग से चलने वाली भारतीय कंपनियों के लिए चीन के विशेषज्ञों को बुलाने के लिए वीजा नहीं मिल पा रही है। इस समस्या के समाधान के बारे में पूछने पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा कि, हम धीरे धीरे हर मुद्दे पर कदम उठाएंगे। शीर्ष नेताओं के निर्देश के बाद विदेश मंत्री स्तर और विशेष प्रतिनिधि स्तर की बातचीत हो चुकी है। अब इंतजार कर रहे हैं कि चीजें किस तरह से आगे बढ़ती हैं और तब दूसरी बैठकों के बारे में फैसला होगा। बताते चलें कि 11 दिसंबर, 2024 को बीजिंग में एसआर वार्ता व्यवस्था के तहत एनएसए अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी की अगुवाई में वार्ता हुई थी। इसमें सिक्कम के नाथुला बॉर्डर पर फिर से कारोबार करने की सहमति बनी है। विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया था कि जल्द ही नाथुला सीमा पर कारोबार शुरू किया जाएगा। माना जा रहा है कि दोनो देशों के वाणिज्य मंत्रालयों के स्तर पर ही यह बातचीत होगी। भारत और चीन के बीच ट्रेड वार्ता की यह सुगबुगाहट तब शुरू हुई है जब अमेरिका के नये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के खिलाफ बेहद सख्ती दिखाने की बात कही है। वैसे उन्होंने भारत के खिलाफ भी शुल्क लगाने की बात ही है लेकिन जानकार मान रहे हैं कि ट्रंप के निशाने पर मुख्य तौर पर चीन है।यह हालात भारत के लिए दोहरा अवसर साबित हो सकता है। एक तरफ भारत अमेरिकी बाजार के लिए चीन के विकल्प के तौर पर अपने आपको पेश कर सकता है और चीन पल्स वन नीति (चीन के साथ एक और देश में मैन्यूफैक्चरिंग करने की अमेरिकी कंपनियों की नीति) का फायदा उठा सकता है तो दूसरी तरफ चीन के साथ भी कारोबार संतुलन बढ़ाने का सौदा कर सकता है।चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा लगभग 58 अरब डॉलर का है। वर्ष 2024-25 का द्विपक्षीय कोराबर पिछले वित्त वर्ष के 118.4 अरब डॉलर से भी ज्यादा होने की उम्मीद है। भारत सबसे ज्यादा सामान चीन से ही आयात करता है।वर्ष 2020 में सीमा विवाद शुरु होने से पहले भारत व चीन के बीच व्यापार घाटा पाटने पर विमर्श होता रहा है। चीन ने तब भारत से चावल, औषधि आदि आयात करने की बात कही थी लेकिन रिश्तों में तनाव का इस पर असर हुआ। दूसरी तरफ चीन से होने वाले आयात में कोई कमी नहीं आई।