नई दिल्ली। गेहूं समेत रबी फसलों की बुआई का मौसम चल रहा है, लेकिन लाल सागर में संकट की वजह से किसानों के सामने सबसे बड़ा संकट डीएपी का है। देश को प्रत्येक वर्ष खरीफ एवं रबी दोनों फसलों के लिए 90 से सौ लाख टन डीएपी की जरूरत पड़ती है, जिसका करीब 40 प्रतिशत हिस्सा घरेलू उत्पादन से पूरा होता है। बाकी के लिए हमें दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस वर्ष भी देश में लगभग 93 लाख डीएपी की जरूरत बताई गई है, लेकिन घरेलू उत्पादन एवं आयात दोनों को मिलाकर उपलब्धता लगभग 75 लाख टन डीएपी की है।
संकट दिख रहा है, लेकिन केंद्र सरकार ने किसानों को आश्वस्त किया है कि उर्वरकों की कमी नहीं होने दी जाएगी। तरल संस्करण नैनो डीएपी के भी इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है। डीएपी संकट के बारे में रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि हमारी निर्भरता दूसरे देशों पर ज्यादा है। मुख्य रूप से रूस, जार्डन एवं इजरायल से आयात करना पड़ता है।
डीएपी के कच्चे माल के रूप में म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) का आयात जार्डन से करीब 30 प्रतिशत और इजरायल से 15 प्रतिशत होता है। हाल के दिनों में हाउती विद्रोहियों के आक्रमण के चलते लाल सागर का मार्ग अवरुद्ध होने से उर्वरक के जहाजों को दक्षिण अफ्रीका के रास्ते भेजना पड़ रहा है। इसके चलते पहले की तुलना में लगभग 6,500 किलोमीटर की दूरी अधिक तय करनी पड़ रही है। इसमें लगभग तीन सप्ताह का समय ज्यादा लग रहा है। दूरी और समय बढ़ने से उर्वरकों की आयात लागत बढ़ गई है। अंतरराष्ट्रीय मूल्यों में भी वृद्धि हुई है।