
कोरबा। कोरबा नगर की कुआंभट्टा क्षेत्र में 40 मकानों को हाई कोर्ट के निर्देश पर तोडऩे के लिए पहुंची सरकारी टीम को आखिरकार बैरंग लौटना पड़ गया। कार्रवाई करने के लिए पहुंची टीम का इस इलाके के लोगों ने जमकर विरोध दर्ज करने के साथ कई प्रकार के सवाल खड़े किए। उन्होंने साफ तौर पर कहां की जब वे 40 साल से यहां पर रह रहे हैं तो जमीन पर दावा करने वाला व्यक्ति इतने दिन तक क्या कर रहा था।
कोरबा तहसील और नगर पालिका निगम के वर्तमान 25 नेहरू नगर के अंतर्गत बड़ी संख्या में मकान बने हुए हैं यहां पर रहने वाले लोगों की संख्या सैकड़ो में है जो लंबे समय से काबिज हैं। इनमें कच्चे पक्के दोनों प्रकार के मकान है जिन्हें नगर पालिका निगम की ओर से सुविधा प्राप्त हैं। इस क्षेत्र में लगातार मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है और पिछले वर्ष में यहां की सभी सडक़ों को पक्का करने का काम भी किया गया है। लोग अपने पास राज्य सरकार की ओर से दिए गए पत्ते भी रखे हुए हैं और उन्हें मालूम है कि अब यह जमीन और मकान उनके अपने हैं। अपने इलाके की जमीन को लेकर किस प्रकार का खेल चल रहा है इस बारे में लोगों को कोई जानकारी नहीं थी यहां पर अचानक जेसीबी और बुलडोजर के साथ सरकारी कर्मचारी तोडफ़ोड़ करने के लिए पहुंचे तो लोग हलबाड़ा गए । जानकारी के मुताबिक हाई कोर्ट के निर्देश पर कोरबा तहसीलदार राहुल पांडे अतिरिक्त तहसीलदार अमित सहित तीन राजस्व निरीक्षक कोरबा क्षेत्र के विभिन्न हल्का के पटवारी प्रशांत दुबे दिनेश उपाध्याय लेविन पटेल प्रीति सिंह और सीमा देवांगन कार्रवाई को अंजाम देने के लिए पहुंचे थे। बताया गया कि किसी सुपर डेवलपर्स की ओर से यहां की जमीन को अपना बताने से संबंधित याचिका हाई कोर्ट में लगाई गई थी जिसके आधार पर वहां से अगली कार्रवाई के लिए प्रशासन को निर्देशित किया गया। ऐसे किसी मामले को लेकर स्थानीय लोगों को कोई खबर थी ही नहीं। 40 से अधिक मकान को तोडऩे के लिए पहुंची टीम का विरोध इसी बात को लेकर हुआ। यहां पर काफी समय से रहने वाली एक महिला ने इस कार्रवाई पर गंभीर सवाल खड़े किए।अपने वार्ड में इस तरह की कार्रवाई और विवाद होने की जानकारी मिलने पर पार्षद शैलेंद्र सिंह भी पहुंच गए। बताया कि यह क्षेत्र काफी पुराना है और लोग लंबे समय से यहां पर निवासरत हैं। ऐसे में उनके लिए मानसून से पहले समस्या खड़े करना समझ से परे है।
पार्षद ने इस बात को लेकर भी घोर आपत्ति दर्ज कराई की इसी इलाके से होकर साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड की रेल लाइन बिछाई गई थी जो बाद में हटा ली गई। इस स्थिति में जमीन को निजी बताना अपने आप में संदेहास्पद है। वैसे भी क्षेत्र के लोगों को सरकार की ओर से जमीन के अधिकार पत्र दिए गए हैं फिर यह जमीन दूसरे व्यक्ति की कैसे हो सकती है