
तिरूवनंतपुरम, 0४ मार्च ।
केरल की दो कम्युनिस्ट पार्टियों-माकपा और भाकपा ने शराब पीने वाले पार्टी नेताओं के लिए अपने नियम बनाए हैं। माकपा ने कहा है कि अगर मीडिया ने हमारे किसी भी साथी को शराब पीते हुए दिखाया तो उसे पार्टी से निकाल दिया जाएगा। उधर, भाकपा ने कहा है कि उनकी पार्टी के किसी भी सदस्य को सार्वजनिक रूप से नशे की हालत में नहीं होना चाहिए। वे अपने घरों में शराब पी सकते हैं और घर के अंदर ही रह सकते हैं। सत्तारूढ़ पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाली वामपंथी सरकार में माकपा सबसे बड़ी पार्टी है, जबकि भाकपा दूसरी सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी है। सोमवार को माकपा के राज्य सचिव, वरिष्ठ विधायक एवं पूर्व आबकारी मंत्री एमवी गोविंदन ने शराब पीने वालों के प्रति पार्टी के रुख पर खुलकर बात की। गोविंदन ने कहा कि हम एक ऐसी पार्टी हैं जिसकी विचारधारा बहुत स्पष्ट है कि हमारे साथियों को धूम्रपान नहीं करना चाहिए या शराब नहीं पीना चाहिए। अगर आप (मीडिया) हमारे किसी साथी को शराब पीते हुए दिखाते हैं तो उसे पार्टी से निकाल दिया जाएगा।गोविंदन इस सप्ताह के अंत में होने वाले पार्टी सम्मेलन से पहले संवाददाताओं से बातचीत कर रहे थे। पार्टी के राज्य सचिव के रूप में उन्हें एक और कार्यकाल मिलने वाला है। गौरतलब है कि भाकपा के राज्य सचिव बिनय विश्वम ने इस साल की शुरुआत में यह कहकर हलचल मचा दी थी कि अपने साथियों के लिए उनकी पार्टी का रुख यह है कि वे शराब पी सकते हैं, लेकिन किसी भी कीमत पर उन्हें सार्वजनिक रूप से नहीं पीना चाहिए। बहरहाल, उन्होंने कहा है कि उनकी पार्टी के किसी भी सदस्य को सार्वजनिक रूप से नशे की हालत में नहीं होना चाहिए। वे अपने घरों में शराब पी सकते हैं और घर के अंदर ही रह सकते हैं। यह साल 1964 की बात है जब भाकपा विभाजित हुई थी और माकपा का गठन हुआ था।
उसके बाद माकपा ने कम्युनिस्टों के बीच लंबे समय तक राज किया। माकपा ने तीन दशकों से अधिक समय तक पश्चिम बंगाल में शासन किया और लगभग इसी तरह का प्रदर्शन त्रिपुरा में भी देखा गया। लेकिन, बाद में इन दोनों ही राज्यों में पार्टी के लिए चीजें आसान नहीं रह गईं।वर्तमान में अब उनका एकमात्र गढ़ केरल है जहां पिनाराई विजयन ने 2021 के विधानसभा चुनावों में सत्ता बरकरार रखते हुए इतिहास रच दिया। पिछले नौ वर्षों में माकपा और भाकपा के बीच छोटी-मोटी झड़पें होती रही हैं। पहली विजयन सरकार में भाकपा ने तब हलचल मचा दी थी, जब उसके चारों मंत्रियों ने विजयन के साथ मतभेद होने के बाद साप्ताहिक कैबिनेट बैठक का बहिष्कार कर दिया था। हालांकि, यह मुद्दा जल्द ही सुलझा लिया गया था।