
कोरबा। भारत सरकार स्वाधीनता के अमृत काल में कई प्रकार के काम अखिल भारतीय स्तर पर कर रही है। ग्रामीण क्षेत्रों को भी ध्यान में रखा गया है। विकास की मुख्य धारा से ऐसे क्षेत्रों को जोडऩे की कोशिश की जा रही है। इन सब के बावजूद कोरबा जिले के पाली विकासखंड में स्थित ग्राम पंचायत बारी उमराव में परंपरागत बिजली की व्यवस्था से लोग अब तक वंचित हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने और सुविधा से लाभान्वित करने के लिए इस गांव में बिजली कंपनी के द्वारा खंबे लगाने से लेकर उपभोक्ताओं को कनेक्शन देने की कार्रवाई जरूर की गई है लेकिन यहां की जनता अभी भी केवल सौर ऊर्जा पर ही टिकी हुई है। मौजूदा स्थिति में लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर बिजली कंपनी ने उनके गांव में खंबे और मीटर लगाने का काम आखिर किसलिए किया?
छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर पावर हब के रूप में कोरबा जिला की पहचान बनी हुई है। अकेले छत्तीसगढ़ इलेक्ट्रिसिटी पावर जेनरेशन कंपनी की तीन परियोजनाएं यहां काम कर रही हैं । इसके अलावा भारत सरकार के सार्वजनिक उपक्रम नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन की कोरबा परियोजना भी संचालित है। इन सब के द्वारा उत्पादित की जा रही 4440 मेगावॉट बिजली सेे छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों की बिजली आवश्यकता की पूर्ति काफी हद तक की जा रही है। ऐसे में माना जा सकता है कि कोरबा जिले मैं पूरा कोना-कोना बिजली के मामले में सुविधा संपन्न होगा। लेकिन अगर आप ऐसा सोचते हैं तो कहीं ना कहीं गलत है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में परिस्थितियों अनुकूल नहीं है । वहां के मामले में- दिया तले अंधेरा.. वाली बात साबित हो रही है। कोरबा जिला मुख्यालय से 57 किलोमीटर दूर पाली विकासखण्ड के ग्राम पंचायत बारीउमराँव में बिजली को लेकर अजीबोगरीब स्थिति बनी हुई है- वह भी स्वाधीनता के 75 साल बीतने और अभिभाजित मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ गठन के 24 वर्ष बाद। छत्तीसगढ़ के पावर हब कोरबा जिले का यह गाँव आज भी बिजली की सुविधा से कोसो दूर है। लगभग 500 की आबादी इस गांव में निवासरत है जो परंपरागत बिजली के मामले में केवल सपने देख रही है। लोग इसी बात से तसल्ली कर रहे हैं कि उनके गांव में 7 साल पहले बिजली के खंभे लगा दिए गए और उपभोक्ताओं के यहां कनेक्शन भी दे दिए गए। ग्रामीणों ने सोचा था कि दूसरे इलाकों की तरह उनके क्षेत्र भी बिजली से रोशन होगा लेकिन सब दिवास्वप्न हो गया।
कुछ मोहल्लों में दिखी रोशनी
इस गांव में रहने वाले लोगों ने मीडिया से बातचीत करते हुए बताया कि इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी के ठेकेदार ने कई साल पहले उनके यहां बिजली के खंभे लगा दिए, और बिजली की लाइन भी बिछाई मीटर भी लगे। लेकिन बिजली आज तक नहीं आई। कुछ मोहल्लों में महीने में एक या दो बार कुछ घण्टो के लिए बिजली आती है लेकिन कुछ मोहल्लों में आज तक बिजली नहीं आई है। बिना बिजली के विद्युत विभाग द्वारा भारी भरकम बिजली का बिल भेज दिया जाता है। भला हो ग्रामीणों ने अपनी समझदारी से सरकारी तंत्र पर दबाव बनाया और यहां सौर ऊर्जा की व्यवस्था कर ली जिससे उनके घरों को रोशनी मिल रही है और उनकी सामान्य जरूरत पूरी हो रही है।
एक्टिव नहीं हुआ बीएसएनल टावर
संचार क्रांति के अंतर्गत कई प्रकार की कोशिश की जा रही है इसी के अंतर्गत भारत संचार निगम लिमिटेड के द्वारा इस गांव में सुविधा देने और मोबाइल नेटवर्क कनेक्टिविटी देने के लिए टॉवर तो खड़ा कर दिया लेकिन वह केवल शो पीस ही बनकर खड़ा है। दूसरी कंपनी से मिलने वाले नेटवर्क के सहारे स्थानीय लोग मोबाइल की उपयोगिता सुनिश्चित कर पा रहे हैं। यहां के बच्चे मोबाइल के टोर्च से पढ़ाई करने को मजबूर है। शिकायतों के बाद भी विद्युत विभाग इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।