
बिश्रामपुर। पर्यावरण स्वीकृति संबंधित अड़चनों के कारण एसईसीएल विश्रामपुर क्षेत्र की गायत्री परियोजना में पखवाड़े भर पूर्व कोयला उत्पादन बन्द हो जाने के बाद अब एक नवंबर से रेहर भूमिगत खदान में भी कोयला उत्पादन पूरी तरह ठप है। दोनो खदानों में कोयला उत्पादन ठप रहने से क्षेत्रीय प्रबंधन की परेशानी बढ़ गई है। ऐसी स्थिति निर्मित होने से एसईसीएल प्रबन्धन को भारी आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ रहा है।
एसईसीएल विश्रामपुर क्षेत्र के गायत्री भूमिगत परियोजना के लिए कोयला उत्पादन की वार्षिक क्षमता तीन लाख टन थी। इस खदान में कोयला उत्पादन बढ़ाने के लिए नवाचार के तहत इसी साल के जनवरी माह से अत्यधिक कंटीन्यूअस माइनर पद्धति के तहत कंटीन्यूअस माइनर के जरिए विदेश से आयातित मशीनों से कोयला उत्पादन प्रारंभ किया गया था। वहीं खदान की वार्षिक उत्पादन क्षमता तीन लाख टन से बढ़ाकर 8.80 लाख टन करने के लिए क्षेत्रीय प्रबंधन द्वारा लंबे समय से पर्यावरण स्वीकृति प्राप्त करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन अभी तक स्वीकृति आदेश नही मिल सका है। कंटीन्यूअस माइनर के जरिए खदान का कोयला उत्पादन बढऩे की वजह से पखवाड़े भर पूर्व ही गायत्री खदान ने अपनी वार्षिक उत्पादन क्षमता के अनुरूप करीब तीन लाख टन कोयला उत्पादन पूर्ण कर लिया था, लेकिन काफी कोशिश के बावजूद 8.80 लाख टन वार्षिक क्षमता की पर्यावरण स्थिति का आदेश प्राप्त नहीं होने की वजह से खान प्रबंधन को कोयला उत्पादन बंद करना पड़ा। बता दें कि दो दशक से भी पुरानी क्षेत्र की गायत्री भूमिगत परियोजना भी सालों से घाटे में चल रही थी। इस खदान में कोयला उत्पादन में व्यापक वृद्धि करने सुरक्षित अत्याधुनिक तकनीक कंटीन्यूअस माइनर के जरिए कोयला उत्पादन करने का निर्णय लिया गया और इसके लिए कंपनी स्तर पर कोलकाता की मैसेज गैनवेल कंपनी से साझेदारी का अनुबंध किया गया था। डायरेक्टर जनरल माइंस सेफ्टी की अनुमति मिलने के बाद अत्याधुनिक मशीनों के जरिए गायत्री खदान से कोयला उत्पादन प्रारंभ किया गया था। गायत्री भूमिगत खदान की वार्षिक कोयला उत्पादन क्षमता तीन लाख टन थी। जिइसके जवाब में गायत्री खदान प्रबंधन ने 21 अक्टूबर को ही 299663 टन कोयला उत्पादन कर लिया था। इसकी वजह से 22 अक्टूबर को खान प्रबंधन को कोयला उत्पादन बंद करना पड़ा। वार्षिक कोयला उत्पादन क्षमता तीन लाख टन से बढ़ाकर 8.80 लाख टन करने के लिए पर्यावरण स्वीकृति प्राप्त करने की प्रक्रिया युद्ध स्तर पर जारी है। बताया जा रहा है कि पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी ( ई ए सी) द्वारा अनुमोदन भी किया जा चुका है। कंसल्ट टू आपरेट (सीटीओ) की प्रक्रिया भी जारी है, लेकिन काफी मशक्कत के बावजूद संबंधित मंत्रालय से पर्यावरणीय स्वीकृति आदेश नही मिल पाने की वजह से गायत्री खदान में 22 अक्टूबर से कोयला उत्पादन बन्द है। अनुमति मिलने के बाद ही प्रबंधन गायत्री भूमिगत खदान से कोयला उत्पादन पुन: प्रारंभ हो सकेगा। गायत्री भूमिगत खदान में एक कंटीन्यूअस माइनर मशीन लगने के बाद अब एक और कंटीन्यूअस माइनर मशीन मशीन लगाने की तैयारियां प्रारंभ कर दी गई है। आगामी 15 नवंबर तक खदान में दूसरी कंटीन्यूअस माइनर मशीन लगाने की प्रबंधकीय कवायद जारी है। खदान में कोयला उत्पादन बंद हो जाने के कारण प्रबंधन द्वारा कामगारों को दूसरी कंटीन्यूअस माइनर मशीन लगाने वाले कार्य स्थल पर व्यवस्था बनाने के कार्य में लगा दिया गया है। दो कंटीन्यूअस माइनर मशीन से कोयला उत्पादन प्रारंभ होने के बाद खदान के कोयला उत्पादन में व्यापक वृद्धि होगी। क्षेत्र की गायत्री भूमिगत खदान के बाद अब रेहर भूमिगत खदान में भी कोयला उत्पादन बन्द हो गया है। रेहर खदान में बीते एक नवंबर से कोयला उत्पादन बन्द है। बताया जा रहा कि इस खदान सीटीओ का नवीनीकरण होना था, लेकिन अब इससे पहले खदान में कोयला उत्पादन के लिए पुन: पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त करने की अड़चन सामने आ जाने से प्रबन्धन की परेशानी बढ़ गई हैं। अब प्रबन्धन को पहले फिर पर्यावरणीय स्वीकृति लेनी पड़ेगी। उसके बाद सीटीओ का नवीनीकरण होगा। तब तक रेहर खदान में कोयला उत्पादन बन्द रहेगा। जिससे प्रबन्धन को भारी आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ेगा। गायत्री खदान का वार्षिक उत्पादन लक्ष्य 8.80 लाख टन है। इस खदान को लक्ष्य अनुरूप बीते रविवार तक 415667 टन कोयला उत्पादन करना था। जिसके जवाब में ये खदान 299663 टन कोयला ही उत्पादन कर सकी है। यह खदान अपने कोयला उत्पादन लक्ष्य से 116004 टन पीछे है। इसी प्रकार रेहर खदान को 65667 टन कोयला उत्पादन करना था। जिसके जवाब में 31270 टन कोयले का ही उत्पादन किया जा सका। यह खदान अपने निर्धारित उत्पादन लक्ष्य से 34397 टन पीछे है।