जांजगीर-चांपा। जिला जिल उपयोगिता समिति की बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार हसदेव बांगो नहर की धार 1 जनवरी से छोड़ी गई है, लेकिन पानी का बहाव कम होने के कारण खेतों तक पानी नहीं पहुंच रहा है। ऐसे में रबी फसल लगाने वाले किसान बोनी को लेकर चिंतित है। किसानों द्वारा नहर में पानी बढ़ाए जाने की मांग की जा रही है।
गौरतलब है कि हसदेव बांगो बांध से अविभाजित जांजगीर- न्यांपा जिले के 90 फीसदी एरिया संचित माना जाता है। इसी को व्यान में रखते हुए यहां पिछले कई सालों से हरसाल ग्रीष्मकालीन फसल लगाई जाती है। इस बार भी जिला जल उपयोगिता समिति की बैठक में ग्रीष्मकालीन फसल लगाने 1 जनवरी से 30 अप्रैल तक नहर में पानी दिए जाने का निर्णय हुआ था। इसके बाद बम्हनीडीह, बिर्रा क्षेत्र के किसानो की मांग पर बांयी तट शाखा नहर में भी 5 जनवरी से पानी छोड़ा गया है, लेकिन समस्या यह है कि 1 जनवरी से पानी छोड़े जाने के बावजूद 10 जनवरी तक किसानों के खेतों तक नहर की धार नहीं पहुंची है। जिले के जांजगीर के आगे नहर की धार इतनी पतली है कि पानी अभी से खेतों तक नहीं पहुंच रहा। रहा है, जबकि जल उपयोगिता समिति: की बैठक में
लिए गए निर्णय के अनुसार जांजगीर शाखा में नवागढ़ के आगे गंगाजल, मिसदा और बर्रा माइनर तक पानी देना है, जहां पिछले साल ग्रीष्मकालीन फसल लगाई गई थी। किसानों का कहना है कि शुरुआत के दो दिनों में नहर की धार अच्छी रही, जिससे पानी का बहाव खेतों तक पहुंचा, लेकिन इसके बाद नहर की धार मुख्य शाखा में कम हो गई, जिसके कारण खेतों की जुताई और बोआई का काम रुक गया है। किसानों का कहना है कि रबी फसल की बुआई लेई पद्धति से होती है और नहर में उसके हिसाब से अभी पानी नहीं आ रहा है। मुख्य शाखा में ही नहर की धार इतनी पतली है कि आसपास के खेतों में पानी नहीं चढ़ रहा है। उनका कहना है कि शुरुआती दिनों में जिस तरह से नहर की धार छोड़ गई थी उसी तरह पानी छोड़े जाने पर ग्रीष्मकालीन फसल की बुआई हो पाएगी। इधर नहर में पानी छूटने के बाद किसानों ने खाद-बीज की तैयारी भी कर ली है। खेतों में खरपतवारों को नष्ट करने के साथ बोआई की तैयारी भी पूरी हो गई है। इंतजार है तो बस नहर की धार बढऩे का।
नहीं करना पड़ता पलायन
जांजगीर-चांपा जिले में तमाम कोशिशों के बावजूद कमाने खाने के लिए पलायन करने की शिकायतें अक्सर सुनने को मिलती है. लेकिन जिन विकासखंड में ग्रीष्मकालीन फसल लगाई जाती है वहां से मजदूरों का पलायन 10 फीसदी भी नहीं होता। कुछेक खानाबदोशी परिवारों को छोड़ दिया जाए तो बाकी के सभी किसान मजदूर परिवार ग्रीष्मकालीन फसल लगाकर अपना जीविकोपार्जन कर लेते है।यही वजह है कि हसदेव बांगों बांध में 70 फीसदी से अधिक जल भराव होने पर किसान ग्रीष्मकालीन फसल लगाने के लिए पानी की मांग करते है और पानी मिलते ही सिंचित एरिया के लगभग सभी गांवों में रखी की खेती होती है।