कोच्च् 15 अक्टूबर [एजेंसी]। केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि न्यायाधीश भगवान नहीं हैं। वह सिर्फ अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं और वादियों या वकीलों को हाथ जोडक़र बहस करने की आवश्यकता नहीं है। न्यायमूर्ति पी.वी. कुन्हिकृष्णन ने यह बात तब कही, जब एक वादी ने हाथ जोडक़र और आंखों में आंसू लेकर अपने मामले पर बहस की। न्यायमूर्ति ने कहा कि भले ही कानून की अदालत को न्याय के मंदिर के रूप में जाना जाता है, लेकिन पीठ में ऐसे कोई देवता नहीं हैं, जिन्हें मर्यादा बनाए रखने के अलावा वकीलों और वादियों से किसी प्रकार की श्रद्धा की आवश्यकता हो।
न्यायूर्ति कुन्हिकृष्णन ने कहा कि सबसे पहले किसी भी वादी या वकील को अदालत के सामने हाथ जोडक़र अपने मामले पर बहस करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि किसी अदालत के समक्ष किसी मामले पर बहस करने का यह उनका संवैधानिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर अदालत को न्याय का मंदिर कहा जाता है, लेकिन बेंच में कोई भगवान नहीं बैठा है। हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी वादी रमला कबीर के मामले में की, जो अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद कराने के लिए व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित हुई थीं। कबीर ने अदालत के समक्ष कहा कि मामला झूठा है।