
प्रयागराज, १९ नवंबर । परिपक्वता एवं पकने की प्रक्रिया के दौरान विभिन्न अवस्थाओं से गुजरने वाले फलों के यौगिकों में परिवर्तन होता रहता है। जैसे-जैसे फल पकने की ओर बढ़ता है, इसमें पाए जाने वाले यौगिक भी बदलते रहते हैं।फल की हर अवस्था में मिलने वाले अलग-अलग यौगिकों में हृदय, मधुमेह, कैंसर और मस्तिष्क संबंधी बीमारियों से बचाव की क्षमता होती है। इन फलों को किस अवस्था में तोड़ा जाए ताकि यह लंबे समय तक ताजे रह सकें, ऐसी कोई तकनीक नहीं है। ऐसे में असमय फल तोडऩे के बाद भंडारण की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण काफी मात्रा में फल खराब हो जाते हैं। इस समस्या का हल निकालते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय भौतिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर ने शोधार्थियों के साथ मिलकर चार वर्षों में चार ऐसे सेंसर विकसित किए हैं जो फलों को तोडऩे का सही समय बताने के साथ ही उनके यौगिकों की सटीक मात्रा बताकर डिजाइनर फल बनाने में मददगार करेंगे। भौतिक विज्ञान विभाग के प्रो.केएन उत्तम और उनके शोधार्थियों ने आप्टिकल सेंसर, रमन सेंसर, कोलोरोमेट्रिक सेंसर और इंफ्रारेड सेंसर का विकास किया है। यह खेतों में आसानी से ले जाए जा सकते हैं और तत्काल यह फलों की परिपक्वता अवधि और उनमें मिलने वाले यौगिकों की मात्रा बताने में सक्षम है। यह शोध टेलर एंड फ्रांसिंग पब्लिकेशन के अंतरराष्ट्रीय जर्नल एनालिटिकल लेटर्स के विभिन्न अंकों में प्रकाशित हुआ है।प्रो.केएन उत्तम के अनुसार फलों की चार अवस्थाओं, कच्चा, विकसित, पकने से पूर्व और पके हुए फल में मौजूद यौगिक बदलते रहते हैं। यह सेंसर पता लगा लेंगे कि फल को पकने में कितना दिन लगेगा। इस गणना के आधार पर किसान फलों को सही समय पर फलों को तोड़कर उनका भंडारण करने से उनके उपयोग की अवधि बढ़ा सकेंगे। इससे फलों के खराब होने से किसानों का नुकसान रूकेगा और यह उनकी आय में वृद्ध्रि होगी। सेंसर फलों को नुकसान पहुंचाए बिना उनके वर्णक्रमनीय विश्लेषण से ही यौगिकों का पता लगा लेगा। यह सेंसर फलों की गुणवत्ता और रूपरंग परवर्तन में बड़ी भूमिका निभाएंगे।मशीन लर्निंग का प्रयोग कर बनाएंगे डिजाइनर फल विज्ञानियों ने डिजाइनर फल तैयार करने के लिए प्रथम चरण में फलों की अवस्थाओं के अनुसार यौगिकों की मौजूदगी का पता लगाने की तकनीक का विकास किया। दूसरे चरण में फलों की गुणवत्ता में परिवर्तन के बाद उसका सफल परीक्षण किया गया और अब तीसरे और आखिरी चरण में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और मशीन लर्निंग की मदद से फलों की गुणवत्ता और उसके रूपरंग को परिवर्तित किया जाएगा।प्रो.उत्तम के अनुसार आयरन फलों के भीतर विभिन्न जैविक प्रक्रिया के जिम्मेदार है। उदाहरण के तौर पर आयरन कम होने पर हाइब्रिड नैनो फर्टिलाइजर का प्रयोग कर इसको बढ़ाया जाएगा। कार्बोहाइड्रेट या ग्लूकोज किस जैविक प्रक्रिया से बनता है, इसका पता लगाकर इसे कम या ज्यादा किया जा सकता है। इससे जरूरत के अनुसार मीठे, फीके, बड़े, छोटे और परिवर्तित रुपरंग वाले फल तैयार किए जा सकेंगे।