कोरबा। गणेश पूजा और उसके बाद अलग-अलग कारण से कोहडिय़ा इलाके में चाकूबाजी की घटना में दो लोगों की हत्या होने को लेकर जमकर किरकिरी होने के साथ सार्वजनिक कार्यक्रमों में डीजे के उपयोग पर सख्ती दिखाई गई। इसके साथ ही कहा गया कि ऐसे मामलों में लगातार कार्रवाई की जाएगी। खासतौर पर जुलूस आदि में डीजे की अनुमति नहीं देने की बात की गई। दुर्गा पूजा विसर्जन के दौरान कई मामले सामने आए जिनमें शांतिपूर्वक प्रतिमाओं को ले जाया गया जबकि इसके बाद सडक़ पर डीजे का शोर लोगों के लिए परेशानी का कारण बना। प्रशासन के दोहरे मापदंड पर अब सवाल खड़े हो रहे हैं।
पिछले साल नेताजी चौराहे से प्रतिमा विसर्जन के दौरान डीजे का कानफोड़ शोर आसपास के व्यवसायियों के साथ-साथ मुख्य सडक़ से आवाजाही करने वाले लोगों के लिए सिरदर्द बना। इस वजह से पूरे रास्ते भर कई प्रकार की समस्याएं आई। इसके दो दिन पहले एमपी नगर क्षेत्र से प्रतिमा विसर्जन के दौरान भी नियमों की धज्जियां उड़ाई गई जिनमें पर्यावरण विभाग के द्वारा तय किये गए मानक से कई गुना ज्यादा डेसिबल में डीजे और धुमाल के शोर ने धज्जियां उड़ाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। इन दोनों मामलों ने जन सामान्य का ध्यान न केवल अपनी तरफ खींचा बल्कि सोचने के लिए मजबूर किया कि जब पिछली दो घटनाओं को लेकर दर्री सहित विभिन्न क्षेत्रों में पुलिस के द्वारा संचालकों को बुला-बुलाकर डीजे जब्त करने की कार्रवाई की गई और आगे के लिए चेतावनी दी गई। ऐसे में दुर्गा पूजा विसर्जन से संबंधित कुछ ही समितियों को आखिर किन शर्तों के साथ मनमानी करने की छूट दी गई। सवाल यह भी उठता है कि जिन डीजे संचालकों ने जमकर ध्वनि प्रदूषण किया उनके विरूद्ध कार्रवाई का डंडा चलाने की जरूरत क्यों नहीं समझी गई। याद रहे दशहरा के एक दिन बाद अधिकांश समितियों के द्वारा प्रतिमाओं का विसर्जन कर दिया गया और उन्होंने गड़वा बाजा अथवा कर्मा नर्तक दल के साथ प्रक्रिया पूरी की। कुछ मामलों में नाम के लिए डीजे पर खर्च किया गया लेकिन उनका साउंड सामान्य स्तर से भी कम रहा। जिसने दर्शाया कि एप्रोच और धन के मामले में कमजोर समितियों के साथ-साथ सेवा देने वाले डीजे संचालकों ने नियम पालन को लेकर ईमानदारी दिखाई।