
नईदिल्ली, ३० दिसम्बर ।
खेती में यूरिया के बाद सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले खाद डीएपी का मूल्य अगले महीने बढ़ सकता है। किसानों को अभी 50 किलोग्राम का एक बैग डीएपी 1350 रुपये में मिल रहा है। इसमें दो सौ रुपये तक की वृद्धि हो सकती है।केंद्र सरकार किसानों को सस्ते मूल्य पर डीएपी उपलब्ध कराने के लिए 35 सौ रुपये प्रति टन की दर से विशेष सब्सिडी देती है, जिसकी अवधि 31 दिसंबर को खत्म हो रही है। हाल के दिनों में डीएपी बनाने में इस्तेमाल होने वाले फास्फोरिक एसिड एवं अमोनिया के मूल्य में 70 प्रतिशत तक की वृद्धि का असर खाद की कीमतों पर देखा जा रहा है। फॉस्फेट और पोटाश युक्त (पीएंडके) उर्वरकों के लिए केंद्र सरकार ने अप्रैल 2010 से पोषक-तत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना चला रखी है। इसके तहत वार्षिक आधार पर निर्माता कंपनियों को सब्सिडी दी जाती है। पीएंडके क्षेत्र नियंत्रण मुक्त है और एनबीएस योजना के तहत कंपनियां बाजार के अनुसार उर्वरकों का उत्पादन और आयात कर सकती हैं। इसके अतिरिक्त किसानों को सस्ते मूल्य पर निर्बाध डीएपी उपलब्ध कराने के लिए एनबीएस सब्सिडी के अलावा डीएपी पर विशेष अनुदान दिया जाता है, जिसकी अवधि का विस्तार अगर नहीं हुआ तो पहली जनवरी से डीएपी का महंगा होना तय है। इस वर्ष खरीफ मौसम के दौरान डीएपी पर प्रति टन सब्सिडी 21,676 रुपये थी, जिसे रबी (2024-25) मौसम के लिए बढ़ाकर 21,911 रुपये कर दिया गया। अगर विशेष सब्सिडी जारी रखने पर विचार नहीं किया गया तो इसका बोझ उद्योग जगत को उठाना पड़ेगा। पिछले कुछ समय से डॉलर की तुलना में रुपये का अवमूल्यन हो रहा है। वैश्विक बाजार में अभी डीएपी का मूल्य 630 डालर प्रति टन है। सिर्फ रुपये के कमजोर होने के चलते आयात लागत में लगभग 1200 रुपये प्रति टन की वृद्धि हो गई है। इसी दौरान अगर सब्सिडी भी बंद कर दी गई तो प्रति टन लगभग 4700 रुपये की लागत बढ़ जाएगी, जो प्रति बैग लगभग दो सौ रुपये महंगा हो सकता है।दो वर्ष पहले किसानों को डीएपी प्रति बैग 12 सौ रुपये में मिलता था, जिसमें 150 रुपये की वृद्धि से प्रति बैग 1350 रुपये मूल्य हो गया। देश में इस वर्ष 93 लाख टन डीएपी की जरूरत थी, जिसका 90 प्रतिशत आयात से पूरा किया जाना था। इसी दौरान वैश्विक बाजार में डीएपी के मूल्य में वृद्धि हो गई। उद्योगों को जब घाटा होने लगा तो आयात प्रभावित हो गया।
नतीजा हुआ कि देश में डीएपी का संकट पैदा हो गया। हालांकि सरकार की पहल से बाद में आयात में तेजी आई और किसानों को उपलब्ध कराया जा सका।