बैकुंठपुर। ब्रुसेल्लोसिस कन्ट्रोल प्रोग्राम के द्वितीय चरण के तहत पशुधन विकास विभाग, जिला कोरिया द्वारा मादा पशुओं में होने वाली बांझपन एवं गर्भपात की बीमारी को नियंत्रण करने हेतु 4 से 8 माह की मादा वत्सो में बु्रसेल्लोसिस का टीकाकरण कार्य व्यापक रूप से किया जा रहा है, जिसके अंतर्गत जिले के सभी ग्रामों में पशुधन विकास विभाग के अधिकारी, कर्मचारी, कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता, गौ-सेवक घर-घर जाकर ऐसे रोगों से ग्रस्त पशुओं का चिन्हांकन कर टीकाकरण कार्य किया जा रहा है। बता दें ब्रुसेल्लोसिस गाय, भैंस, भेड़, बकरी, शुकर एवं कुत्तों में फैलने वाली एक संक्रामक बीमारी हैं। ये एक प्राणीरूजा अथवा जीव जनति (र्ववदवजपब) बीमारी है जो पशुओं से मनुष्यों एवं मनुष्यों से पशुओं में फैलने की आशंका बनी होती है। इस बीमारी से ग्रस्त पशु 7-9 महीने के गर्भकाल में गर्भपात हो जाता है। ये रोग गौठान व पशुशाला में बड़े पैमाने पर फैलता है, जिससे पशुओं में गर्भपात हो जाता है जिससे पशुधन की हानि होती है। इस रोग से मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। ‘ब्रुसेलोसिस रोग का कारण’ गाय, भैंस में ये रोग ब्रूसेल्ला एबोरटस नामक जीवाणु द्वारा होता है। ये जीवाणू गाभिन पशु के बच्चेदानी में रहता है तथा अंतिम तिमाही में गर्भपात करता है। एक बार संक्रमित हो जाने पर पशु जीवन काल तक इस जीवाणु को अपने दूध तथा गर्भाशय के स्त्राव में निकलता है। ‘संक्रमण का मार्ग’ पशुओं में ब्रुसेल्लोसिस रोग संक्रमित पदार्थ के खाने से, जननांगों के स्राव के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्षण संपर्क से, योनि स्त्राव से, संक्रमित चारे के प्रयोग से तथा संक्रमित वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान द्वारा फैलता है। प्राय: यह देखा जाता है कि मनुष्यों में ब्रुसेल्लोसिस रोग सबसे ज्यादा रोग ग्रस्त पशु के कच्चे दूध पीने से फैलता है। इसके अलावा गर्भपात होने पर पशु चिकित्सक या पशुपालक असावधानी पूर्व जेर या गर्भाशय के स्त्राव को छूते है, जिससे ब्रुसेल्लोसिस रोग का जीवाणु त्वचा के किसी कटाव या घाव से शरीर में प्रवेश कर जाता है। पशुओं में ब्रुसेल्लोसिस रोग के ‘लक्षण’ जो देखने को मिलते हैं, पशु का तीसरी तिमाही (6-8 महीने) में गर्भपात हो जाता है। मरा हुआ बच्चा या समय से पहले ही कमजोर बच्चा पैदा होता है।दूध की पैदावार कम हो जाती है। पशु बाँझ हो जाता है । नर पशु में वृषणों में सूजन हो जाती है प्रजनन शक्ति काम हो जाती है द्यसूअर में गर्भपात के साथ जोड़ो और वृषणों में सूजन पाई जाती हैद्य भेड़, बकरियों में भी गर्भपात हो जाता है। वहीं मनुष्यों में ब्रुसेल्लोसिस ग्रस्त पशुओं के दूध सेवन करने से बुखार का रोज बढऩा और घटना इस बीमारी का मुख्य लक्षण है। थकान, कमजोरी लगना, रात को पसीना आना और शरीर में कंपकपी होना, भूख न लगना और वजन घटना, पीठ एवं जोड़ो में दर्द होना भी लक्षण होते हैं। ब्रुसेल्लोसिस टीकाकरण के दौरान सुरक्षात्मक तरीकों का पालन किया जाना आवश्यक होता है। पशुधन विकास विभाग ने जिले के पशुपालकों से आग्रह किया है अधिक संख्या में अपने 4 से 8 माह के मादा वत्सो में टीकाकरण का कार्य अवश्य कराएं ताकि पशुधन में होने वाले इस जानलेवा बीमारी से बचा जा सके। साथ ही ऐसे पशुओं के रखरखाव, चारे आदि की व्यवस्था उचित ढंग से किया जाए ताकि इस बीमारी का प्रकोप मनुष्य पर असर न हो।