नई दिल्ली। दिल्ली में विधानसभा चुनावों की धूम है सभी दल जोर शोर से चुनाव प्रचार में जुटे हैं। हर पांच साल में चुनाव नयी विधानसभा गठन और सरकार गठन के लिए होता है। चुने हुए जनप्रतिनिधियों का सबसे महत्वपूर्ण काम जनता की भलाई के लिए नये कानून पारित करना, विधानसभा में जनता के मुद्दों को उठाना उनकी समस्याओं पर चर्चा करके समाधान निकालने का होता है लेकिन अगर दिल्ली की वर्तमान सातवीं विधानसभा के कार्यकाल पर निगाह डाली जाए तो पिछली छह विधानसभाओं की तुलना में कम कामकाज हुआ। सातवीं विधानसभा की पांच वर्ष में मात्र 74 बैठकें हुईं जो कि सूबे की पिछली सभी विधानसभाओं में सबसे कम हैं। इतना ही नहीं दिल्ली विधानसभा ने पांच वर्ष में 14 बिल पारित किये जिनमें से पांच बिल विधायकों का वेतन, भत्ते बढ़ाने के बारे में थे।
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिर्सच द्वारा दिल्ली की सातवीं विधानसभा के कामकाज के विश्लेषण की जारी रिपोर्ट बताती है कि पांच वर्ष में विधानसभा की सिर्फ 74 बैठकें हुई जो कि अभी तक पिछली किसी भी विधानसभा के मुकाबले सबसे कम हैं। इन बैठकों में सिर्फ नौ घंटे का प्रश्नकाल हुआ।
जब भी विधानसभा की बैठक हुई तो औसतन तीन घंटे ही कामकाज हुआ। हर वर्ष बिना सत्रावसान के एक ही सत्र चला जो हिस्सों में बांटा गया। जबकि नियम-परंपरानुसार उपराज्यपाल विधानसभा का हर सत्र बुलाते हैं और सत्रावसान करते हैं जबकि स्पीकर सत्र के दौरान बैठकें बुलाते हैं।