
जांजगीर-चांपा। पुत्रों की दीर्घायु व उनकी मंगल कामना के लिए माताओं ने कल अगस्त को हलषष्ठी का व्रत रखा। इस दौरान माता हलषष्ठी की विधि पूर्वक पूजा-अर्चना की गई। पूजा के लिए महिलाओं ने पसहर चावाल, भैस का दूध, घी, दही सहित छह प्रकार की भाजी की व्यवस्था की थी।
हलषष्ठी व्रत को लेकर महिलाओं में खासा उत्साह देखा गया। सुबह से इस सामग्रियों की एक-दूसरे के घर बांटने का सिलसिला शुरु हुआ। फिर घरों में तालाब बनाकर पेड़ों की डालियों से पौधे उगाये और संतानों की सुख समृद्धि के लिए माताओं ने दोपहर 12 बजे के बाद समूह में हलषष्ठी देवी व वरुण देवता की पूजा-अर्चना की। इसके बाद हलषष्ठी की प्रचलित कथाओं का श्रवण किया और हलंषष्ठी व्रत की महत्ता बताई गई। तत्पश्चात महिलाओं ने पसहर चावल व छह प्रकार की भाजी मुनगा, कद्दू, सेमी, तोरई, करेला, मिर्ची को प्रसाद के रुप में ग्रहण किया एवं पुत्रों की दीर्घायु व सुखी भविष्य के लिए माथे पर तिलक व पीठ में पोता मारकर व्रत की मान्यता पूरी की। इसके लिए एक दिन पहले शुक्रवार को बाजारों में पूजा सामग्री खरीदने वालों की भीड़ देखी गई। महिलाओं ने लाई, दोना, पत्तल, पसहर चावल और महुआ फल, भाजी इत्यादि समेत अन्य पूजन सामग्री की खरीददारी की। मान्यता के अनुसार बच्चों की लंबी उम्र के लिए माताओं द्वारा किया जाने वाला छत्तीसगढ़ी संस्कृति यह ऐसा पर्व है जिसे हर जाति और वर्ग के लोग मनाते हैं।
(कमरछठ) इस दिन माताएं उपवास रहकर अपने संतान की दीर्घायु और सुख समृद्धि की कामना की वहीं शाम के समय अपने बच्चों ने बच्चों के पीठ पर ममता की थाप मारकर आशीर्वाद दिया। गौरतलब है कि हलषष्ठी का दात भादो मास के कृष्ण पक्ष के षष्ठी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई श्री बलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पूजा पूजा में चना, जौ, गेहूं, मक्का अरहर, तिवरा, लाई, महुआ, इत्यादि चढ़ाया जाता है। हलषष्ठी पर बिना हल चले अन्न (पसहर) चावल जैस की दूध, दही, घी का उपयोग किया जाता है। इस दिन महुआ का दातुन कर पलाश के पत्तल में पसहर चावल का भोजन करने की परंपरा है। इस दिन महिलाएं पूजा के लिए बनाए गए सगरी कुंड के परिक्रमा लगाकर सामूहिक रूप से गीत गया। पंडित अनूप कुमार शर्मा ने बंधवा तालाब शिव मंदिर के पास एवं मनोज कुमार पांडेय ब्यास चौक ठाकुर देव के पास हलषष्ठी माता की कथा व्रतधारी महिलाओं को सुनाई। उसके बाद घर आकर माताएं अपने अपने संतानों के पीठ पर छुईही के पोता मारकर उनके सुख समृद्धि सुखमय जीवन और लंबी दीर्घायु की कामना की गाई। तत्पश्चात माताएं पसहर चावल से बने भोजन में गैस के दूध, दही मिलाकर वाहण कर व्रत तोड़ी गई।