
नईदिल्ली, ३० जून।
आपराधिक न्याय प्रणाली में सुगम और त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए समुचित प्रविधान किये गए हैं। लेकिन इसे पूरी तरह जमीन पर उतारने के लिए मशक्कत करनी होगी। पूरी तरह से डिजिटल और फॉरेंसिक पर ज्यादा जोर देने वाली इस प्रणाली को पूरी तरह से लागू करने में चुनौतियां भी अपार है। सभी थानों और अदालतों में इंटरनेट कनेक्टिविटी, बिजली की सुचारू आपूर्ति, पावर बैकअप की व्यवस्था, क्राइम सीन से सबूत जुटाने के लिए सभी जिलों में पर्याप्त फॉरेंसिक एक्सपर्ट की तैनाती और मोबाइल फॉरेंसिक बैन की उपलब्धता सुनिश्चित कराने में समय लग सकता है। वहीं, सीसीटीएनएस ई-कोर्ट, ई-फॉरेंसिक, ई-प्रिजन और ई-प्रोसेक्यूशन पर बड़ी मात्रा में उपलब्ध होने वाले डाटा को क्लाउड सर्वर पर सुरक्षित रखने की बड़ी चुनौती भी होगी। नए आपराधिक न्याय प्रणाली को पूरी तरह से लागू करने में सबसे बड़ी चुनौती बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी की उपलब्धता सुनिश्चित कराना होगा। वैसे भारतनेट के सहारे सभी पंचायतों को आप्टिकल फाइबर से जोडऩे का काम पूरा हो चुका है। लेकिन बहुत सारे इलाकों में कनेक्टिविटी की समस्या बरकरार है। जबकि न्यायश्रुति एप से गवाही, ई-साक्ष्य पर सबूतों को अपलोड करने और अदालतों में डिजिटल सुनवाई के कनेक्टिविटी सबसे अहम है। इंटरनेट कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए बिजली की अबाध आपूर्ति और बिजली कटने की स्थिति में पावर बैकअप की व्यवस्था भी अहम होगी। पिछले एक दशक में बिजली की आपूर्ति में काफी सुधार हुआ है और सरकार लगभग 24 घंटे बिजली उपलब्धता का दावा कर रही है। लेकिन गर्मी में ज्यादा मांग के समय कई इलाकों में घंटों बिजली कटौती की शिकायतें भी मिल रही है। ऐसी स्थिति पुलिस जांच से लेकर अदालती सुनवाई तक प्रभावित हो सकती है। नए आपराधिक कानूनों में फॉरेंसिक पर अत्यधिक जोर है। इसके लिए सभी जिलों में पर्याप्त संख्या में फॉरेंसिक एक्सपर्ट और मोबाइल फॉरेंसिक वैन की जरूरत पड़ेगी। देश में कुल 885 पुलिस जिले हैं, जिनमें इस साल जनवरी तक केवल 75 जिलों में मोबाइल फॉरेंसिक लैब उपलब्ध था। तीन कंपनियों के मोबाइल फॉरेंसिक वैन के डिजाइन को मंजूरी दी गई थी और राज्यों को इन्हें खरीदने को कहा गया था।
लेकिन अभी तक ये आंकड़े उपलब्ध नहीं है कि पिछले छह महीने में कितने मोबाइल फॉरेंसिक वैन खरीदे गए और कितने जिलों में उसकी उपलब्धता सुनिश्चित हुई है।इसी तरह से फॉरेंसिक एक्सपर्ट की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कैबिनेट ने 19 जून को 2254 करोड़ के प्रोजेक्ट के मंजूरी दी है। इसके तहत सभी राज्यों में नेशनल फॉरेंसिक साइसेंस यूनिवर्सिटी के कैंपस सभी राज्यों में खोले जाएंगे। जाहिर कैंपस खुलने और उनसे प्रशिक्षित एक्सपर्ट के निकलने में समय लगेगा।
नए आपराधिक कानूनों के लागू होने के बाद केस जुड़े सबूतों, बयानों, जांच रिपोर्ट, अदालती सुनवाई का डाटा बड़ी मात्रा में उपलब्ध होगा।वन डाटा, वन इंट्री के तहत सभी प्लेटफॉर्म पर इस डाटा को उपलब्ध कराने के लिए थाने से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बड़े पैमाने पर क्लाड सर्वर की जरूरत पड़ेगी। क्लाड सर्वर में मौजूद इतने बड़े डाटा की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी नेशनल इंफोर्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी), सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस कंप्यूटिंग (सी-डैक) और नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) को सौंपा गया है। अहमदाबाद और चंडीगढ़ में डाटा को सुरक्षित रखने के लिए पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया था। लेकिन इसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है।