नईदिल्ली, 0८ दिसम्बर।
सुप्रीम कोर्ट 12 दिसंबर को पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के कुछ प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा।भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की विशेष पीठ दोपहर 3:30 बजे मामले की सुनवाई करेगी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून मनमाना और अनुचित है और धर्म का पालन करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। याचिकाओं में कहा गया है कि यह अधिनियम हिंदुओं, जैन, बौद्ध और सिखों से उनके पूजा स्थलों और तीर्थस्थलों को बहाल करने के अधिकारों को छीनता है, जिन्हें पहले आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था।
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि यह अधिनियम मनमाना है, धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है और अदालत में जाने और न्यायिक उपाय मांगने के अधिकार को भी छीन लेता है। मुख्य याचिका धार्मिक गुरु और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने 2020 में दायर की थी। इस पर कोर्ट ने मार्च, 2021 में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। इसके बाद काशी राजघराने की बेटी, महाराजा कुमारी कृष्ण प्रिय, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय, धार्मिक नेता स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती और मथुरा के देवकीनंदन ठाकुर समेत कुछ और लोगों ने अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी हिंदू याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर याचिकाओं को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है।
जमीयत का कहना है कि अधिनियम के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई से पूरे भारत में अनगिनत मस्जिदों के खिलाफ मुकदमों का सिलसिला शुरू हो जाएगा। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और ज्ञानवापी मस्जिद समिति ने भी सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। मस्जिद समिति ने कहा कि अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करने के परिणाम कठोर होने वाले हैं। पूजा स्थल अधिनियम विभिन्न धर्मों के पूजा स्थलों से संबंधित है।
अधिनियम में देशभर के पूजा स्थलों के धार्मिक स्वरूप को बदलने पर प्रतिबंध लगाया गया है और वो 15 अगस्त, 1947 को आजादी के समय जैसे थे, उन्हें उसी धार्मिक स्वरूप में रखने का प्रावधान किया गया है। अधिनियम की धारा 3 में एक धर्म के पूजा स्थल को दूसरे धर्म के पूजा स्थल में बदलने पर रोक लगाई गई है।
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