
कोरबा। होलाष्टक हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण अवधि मानी जाती है, जो फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक चलती है। इस दौरान शुभ कार्यों जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, यज्ञोपवीत आदि वर्जित रहेंगे।
भागवताचार्य पंडित दशरथ नंदन द्विवेदी के अनुसार, होलाष्टक की मान्यता प्राचीन काल से चली आ रही है। यह काल ज्योतिषीय दृष्टि से अशुभ माना जाता है, क्योंकि इस दौरान ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति अनुकूल नहीं होती। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस समय भक्त प्रह्लाद पर अत्याचार किए गए थे, जिसके चलते यह अवधि अशुभ मानी जाती है। हालाँकि आधुनिक विज्ञान इस प्रकार की मान्यताओं को नहीं मानता, लेकिन भारतीय संस्कृति में परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं का विशेष स्थान है। समाज में इसकी स्वीकार्यता बनी हुई है और लोग आज भी इन नियमों का पालन करते हैं। होलाष्टक समाप्त होने के बाद, होलिका दहन और फिर होली के पर्व के साथ शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। ग्रह-नक्षत्रों की अनुकूलता को ध्यान में रखते हुए विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत आदि शुभ कार्य किए जाते हैं।































