कोरबा सीट पर मुख्य मुकाबले में कांग्रेस और भाजपा
कोरबा। अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्षरत बहुजन समाज पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के सामने सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर है कि क्या लोकसभा चुनाव में उनके प्रत्याशियों की जमानत भी बच सकेगी। कोरबा लोकसभा क्षेत्र से दोनों पार्टियों ने बड़ी उम्मीद से अपने प्रत्याशी उतारे थे। 7 मई को संसदीय क्षेत्र में 74 प्रतिशत मतदान के बाद ईवीएम स्ट्रांग रूम के हवाले हो गई है। प्रत्याशियों को नतीजों की प्रतीक्षा है, जो 4 जून को सार्वजनिक होंगे।
कोरबा सीट से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने भरतपुर-सोनहत क्षेत्र के श्यामसिंह और बसपा ने बिलाईगढ़ के पूर्व विधायक दूजराम बौद्ध को मैदान में उतारा था। इसके पीछे कुल मिलाकर जातिगत वोटों को साधने का गणित था। कोरबा सीट पर चार जिलों की 8 विधानसभा शामिल हैं जिनमें 16 लाख से अधिक मतदाता पंजीकृत हैं। इनमें से सिर्फ 74 प्रतिशत ने ही मतदान करने में रूचि ली। लोकसभा क्षेत्र में मुख्य मुकाबला कांग्रेस की वर्तमान सांसद ज्योत्सना महंत और भाजपा की सरोज पांडे के बीच रहा जो पूरे चुनाव प्रचार के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में मतदाताओं को नजर आई। इनके अलावा 25 अन्य प्रत्याशी मैदान में थे जिनमें बसपा और गोंगपा के प्रत्याशी भी शामिल हैं।
राजनीति के जानकारों की मानें तो चुनाव जीतने की गरज से मुख्य पार्टियों ने ही अपने संसाधनों का उपयोग किया। प्रचार तंत्र पर ध्यान दिया और इसी हिसाब से रणनीति भी बनाई। जबकि क्षेत्र में उपस्थिति दर्ज कराने और अपने चेहरे की पहचान को बरकरार रखने के इरादे से कई पार्टियां चुनाव में हिस्सा लेने को लेकर आतुर रहीं। चुनाव आयोग के पैरामीटर के हिसाब से 6 प्रतिशत वोट हासिल करने की स्थिति में अभ्यर्थियों की जमानत बच जाती है अर्थात वे उस राशि को पाने के हकदार होते हैं जो नामांकन के समय जमा की जाती है। इससे बड़ी बात यह होती है कि अगर किसी की जमानत जब्त हो जाती है तो मान लिया जाता है कि उसके जनाधार का स्तर क्या है।