
पटना 0८ अप्रैल । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के पक्ष में सप्ताह भीतर दूसरी जनसभा कर गए और महागठबंधन अभी प्रत्याशियों के चयन में ही उलझा हुआ है। चुनावी संभावनाओं के आकलन का आधार नहीं होकर भी यह महागठबंधन में किचकिच का कारण तो बन ही गया है। सीट बंटवारे में देरी के साथ शुरू हुआ अंतर्द्वंद्व अब दल छोडऩे से लेकर क्षुब्ध नेताओं की मुखरता तक पहुंच चुका है।इसका एकमात्र कारण राजद की दबंगई है, जिसने एकतरफा निर्णय लेते हुए महत्वपूर्ण घटक कांग्रेस को कठिन मैदान में भेज दिया और अब अपने प्रत्याशियों के चयन में मनमानी किए जा रहा है। बाहरियों की यह आवक-आगवानी घरवालों को रास नहीं आ रही है। पहले चरण का प्रचार अभियान परवान की ओर बढऩे लगा है, लेकिन महागठबंधन के किसी बड़े नेता की अब तक कोई चुनावी सभा नहीं हुई। ऐसा तब, जबकि तीन दिन के बाद ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर बिहार में जनसभा कर गए हैं। जमुई में मोदी की पहली जनसभा चार अप्रैल को हुई थी और सात अप्रैल को दूसरी नवादा में। गया और औरंगाबाद के साथ इन दोनों संसदीय क्षेत्रों में पहले चरण के तहत 19 अप्रैल को मतदान होना है। औरंगाबाद कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है।सीट बंटवारे के पहले ही लालू ने वहां अभय कुशवाहा को राजद का सिंबल दे दिया। पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार मन मसोस कर रह गए। वहां महागठबंधन का प्रचार अभियान एकाकी होकर रह गया है। सिंबल लेने से एक दिन पहले जदयू छोड़कर आए अभय कुशवाहा से तालमेल बिठाने में राजद के स्थानीय कार्यकर्ता बहुत सहज नहीं और निखिल कुमार के चौबारे में पसरे सन्नाटे के बाद कांग्रेस-जनों के लिए भी करने-धरने को कुछ बचा नहीं।भाजपा तो जैसे इसी प्रतीक्षा में थी। वहां उसके प्रत्याशी सुशील कुमार सिंह अपनी चौथी जीत के लिए रात-दिन एक किए हुए हैं। राजद के पास गंवाने को कुछ नहीं। अलबत्ता वह सफल हुआ तो औरंगाबाद में उसकी पहली जीत होगी। विपक्षी एकता की पहल के क्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राय मानी गई होती तो आज बिहार में महागठबंधन कुछ और हैसियत में होता। ऐसा राजद के कारण नहीं हुआ, क्योंकि उसे महागठबंधन में अपना दबदबा चाहिए था। नीतीश ने अलग राह ली तो यह इत्मीनान हुआ कि अब सीट बंटवारे में कोई पेच नहीं रहा, लेकिन लालू प्रसाद के रहते राजनीति बिना पेच के हो ही नहीं सकती। राजद की दबंगई ऐसी कि पहले चरण के नामांकन की तिथि निकल जाने के बाद सीटों का बंटवारा हुआ। उसके बाद प्रत्याशियों के जोहे-जोड़े जाने की ऐसी कवायद शुरू हुई कि दल के लोगों के दावे दरकिनार होने लगे। पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव इस पर राजद में अपना विरोध प्रकट कर चुके हैं तो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. अनिल शर्मा कांग्रेस छोड़कर भाजपा के साथ हो गए हैं।औरंगाबाद के पड़ोसी गया में कोई असहज स्थिति नहीं, क्योंकि उस सीट पर राजद की दावेदारी स्वाभाविक थी।