
जांजगीर चांपा। ईश्वर एक ही है जब एक परमात्मा चार रूप राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न में प्रकट हुए तब चारों वेद ने एक रूप बनाकर बाल्मीकि रामायण के रूप में अवतार ले लिया। महर्षि वाल्मीकि का रामायण वेद ही है। यह बातें अयोध्या धाम से पधारे हुए अनंत विभूषित, स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य महाराज ने श्री दूधाधारी मठ महोत्सव के अंतर्गत श्रोताओं को बाल्मीकि रामायण की कथा का रसपान कराते हुए उद्घृत किया। उन्होंने कहा कि. भारतवर्ष ने हमेशा सत्य को ही स्वीकार किया है। हम जिस धर्म को मानते हैं वह सत्य सनातन धर्म है। सनातन धर्म अनादि है इसे ही वैदिक धर्म कहते हैं। सनातन धर्म के मूल वेद हैं। व्यक्ति का कोई पता नहीं होता उसका घर ही उसका पता है। भगवान का घर रामायण है। रामायण भगवान श्री रामचंद्र जी का वांग्मय स्वरूप है।रामायण ही उनका शरीर है। सीता चरित्र पर व्याख्या करते हुए विद्वान आचार्य ने कहा कि .यदि श्री सीता जी नहीं होती तो रामचंद्र जी कभी लोक में प्रतिष्ठित ही नहीं होते। जब श्री राम जी ने उन्हें भाई लक्ष्मण के द्वारा वन में छोड़ दिया तब माता सीता व्याकुल हो उठी उन्होंने सोचा कि मैं कहां जाऊं, क्या करूं,उन्हें कुछ भी नहीं सूझ रहा था। वह जोर.जोर से विलाप करने लगी, जब महर्षि वाल्मीकि को पता चला कि यहां कोई देवी विलाप कर रही। उन्होंने उसे अपने आश्रम में आश्रय दिया। ध्यान रखना जिसे परमात्मा भी छोड़ देते हैं उसकी सहायता महात्मा करते हैं। गर्भवती माता सीता ने लव और कुश को जन्म दिया। हमारे भारतवर्ष में माता के गर्भाधान से ही बच्चों की शिक्षा आरंभ हो जाती है। भक्त प्रह्लाद, अभिमन्यु इन्होंने माता के गर्भ में ही शिक्षा प्राप्त की। हमने सुना है कि भगवान रामचंद्र जी को जन्म देने वाली माता कौशल्या की यह जन्मदात्री भूमि है। छत्तीसगढ़ की यह धरती परम सौभाग्यशाली है ।उल्लेखनीय है कि राम कथा का रसपान करने के लिए मंच पर महामंडलेश्वर राजेश्री महन्त रामसुन्दर दास महाराज के साथ पूर्व न्याय मूर्ति टीपी शर्मा तथा उनके साथ अनिल शर्मा, हरीश शुक्ला, जे के शर्मा भी उपस्थित थे। इनके अतिरिक्त पूर्व शिक्षा मंत्री प्रेम साय सिंह टेकाम, भागवताचार्य राजीव नयन महाराज, राम तिलक दास महाराज सहित अनेक गणमान्य नागरिक गण सम्मिलित हुए।