
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को चेतावनी दी कि यदि वे भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहे तो उनके विरुद्ध अवमानना कार्रवाई की जाएगी। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासत की ओर से प्रस्तुत नोट का अवलोकन किया और पाया कि कई राज्य संबंधित निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। फरासत इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सहायता कर रहे हैं।
पीठ ने कहा कि यदि किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ने संबंधित निर्देशों का अनुपालन नहीं किया है, तो हमें उनके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू करनी पड़ सकती है। भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मुद्दा 2022 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उठा था, जिसमें पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड द्वारा कोविड टीकाकरण अभियान और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के खिलाफ दुष्प्रचार अभियान चलाने का आरोप लगाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया में प्रकाशित या प्रदर्शित किए जा रहे भ्रामक विज्ञापनों के पहलू को उजागर किया था, जो औषधि एवं जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 और संबंधित नियमों, औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्रविधानों के खिलाफ हैं। फरासत ने बुधवार को सुनवाई के दौरान कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अब तक दायर हलफनामों के अनुसार, 1954 के संबंधित अधिनियम के तहत वस्तुत: कोई मुकदमा नहीं चलाया जा रहा है।
पीठ ने कुछ राज्यों द्वारा दायर हलफनामों का हवाला दिया और सवाल किया कि उन्होंने प्राप्त शिकायतों के आधार पर कार्रवाई क्यों नहीं की। पीठ ने कहा कि कुछ राज्यों को उल्लंघनकर्ताओं की पहचान करना मुश्किल लगा। पीठ ने कहा कि हम अब अवमानना की कार्रवाई करेंगे और हम प्रत्येक राज्य द्वारा किए गए अनुपालन की गहन जांच करेंगे।