
बदायूं, २१ अक्टूबर ।
मुझे तुमसे बिछडऩा ही पड़ेगा, मैं तुमको याद आना चाहता हूं…। तुम्हें बस ये बताना चाहता हूं, मैं तुमसे क्या छिपाना चाहता हूं…। असंख्य हृदय में ऐसी अनगिनत पंक्तियों का बसेरा बनाकर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर फहमी बदायूंनी हमेशा के लिए यादों में समा गए। उनका 72 वर्षीय शरीर लंबी बीमारी से जूझ रहा था। वो दर्द उनके चेहरे की रौनक को जकड़ता जा रहा था। आखिरकार हमारा हाल तुम भी पूछते हो, तुम्हें तो मालूम होना चाहिए था… पंक्ति दोहराने को मजबूत करनी शख्सियत रविवार शाम को वक्त के आगे थम गई। उनके निधन से जिले में साहित्य का एक अध्याय समाप्त हो गया। बिसौली के मुहल्ला पठान टोला में जन्मे पुत्तन खां ने 80 के दशक में शायरी को साथी बनाया तो नया नाम मिला- फहमी बदायूंनी। उनकी कला के कद्रदानों ने हमेशा इसी नाम से आवाज दी और इसी नाम ने उन्हें दुनिया भर में पहचान दी। उनके करीबी बताते हैं कि एक मुशायरे में उन्होंने पढ़ा था प्यासे बच्चे पूछ रहे हैं, मछली-मछली कितना पानी, छत का हाल बता देता है, परनालों से बहता पानी … । वो शेर ऐसा गूंजा कि फहमी बदायूंनी साहित्य के आसमान में सितारा बनकर उभरते चले गए।
उनके कई शिष्य हैं, जो हर मुशायरे या कवि सम्मेलन को अपनी आंखों में बसाए हैं। उन्होंने बताया कि फहमी बदायूंगी के शब्दों से मोरारी बापू को विशेष प्रेम था। वह उनके आश्रम में कई बार मुशायरा करने गए। इसके अलावा, कई देशों में उनकी कला के कद्रदान हुए जोकि समय-समय पर अपने मंचों पर बुलाया करते थे। इंटरनेट मीडिया का दौर आया तो फहमी बदायूंनी तुम्हें बस ये बताना चाहता हूं, मैं तुमसे क्या छिपाना चाहता हूं, कभी मुझसे भी कोई झूठ बोलो, मैं हां में हां मिलाना चाहता हूं
…पंक्तियों के सहारे हर युवा के करीब पहुंच गए थे।